SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४) जाता है कि इनका मूल पुरुष वासुदेव सवालख पहाड़की तरफ़से आया था। ये पहाड़ पंजाबमें हैं। सवालख पहाडका यह अर्थ बताया जाता है कि उसके सिलसिलेमें छोटे बड़े सवालाख पहाड़ हैं; जैसा कि बाबरने अपनी डायरीमें लिखा है । चौहानोंके शिलालेखों और दानपत्रों में इसका संस्कृतरूप सपादलक्ष कर दिया है और इसीसे चौहानोंको सपादलक्षीय लिखा है । आज कल लोग साँभर, अजमेर और नागोरको सपादलक्ष देश समझते हैं, मगर असलमें नागोरमेंके थोडेसे गाँव स्वालक कहाते हैं; जहाँ पर स्वालखसे आये हुए जाट बसते हैं । साम्भर, दिल्ली, अजमेर, और रणथंभोरके चौहान संभरी कहलाते थे । इन्हीकी शाखामें आजकल पाटवी ठिकाना नीमराणा इलाके अलवर में है और मैनपुरी, इटावा वगैरहकी तरफ़से मेवाड़में गये हुए चौहानोंके कई बड़े बड़े ठिकाने बेदला वगैरह मेवाड़में हैं। ये पुरबिये चौहान कहाते हैं । __ लाखनसी चौहान साँभरसे नाडोलमें आ रहा था। इसके वंशज नाडोला चौहान कहलाये । लाखनसीकी पन्द्रहवीं पीढ़ीमें केल्हण और कीतू हुए । ये आसराजके बेटे थे। इनमेंसे केल्हण तो नाडोलमें रहा और कीतूने पवारोंसे जालोरका किला छीन लिया । यह किला जिस पहाड़ी पर है उसे सोनगिर कहते हैं, इसीसे कीतूके बंशज सोनगरा चहवान कहलाये । सुलतान शहाबुद्दीनने जब पृथ्वीराजसे दिल्ली और अजमेर फतह किया तव कीतका पोता उदैसी उसका तावेदार हो गया । इसीसे जालोरका राज कई पीढ़ियों तक बना रहा और आखिर सुलतान अलाउद्दीनके वख्तमें रावकान्हड़देवसे गया । ऊपर लिखी सोनगरा शाखामेंसे दो शाखाएँ और निकलीं । एक देवड़ा और दूसरा साँचोरा । देवड़ा चौहानोंने तो आबू और चन्द्रावतीको फ़तह करके परमारोंकी असली शाखाका राज खत्म कर दिया । उन्हींके ( देवड़ों ) के वंशज आजकल सीरोहीके राव ( राजा ) हैं। दूसरी शाखाके चौहानोंने कालमा शाखाके पवारोंसे साँचोर छीन लिया था। इसीसे वे साँचोरा कहलाये । साँचोर नगर जोधपुर राज्यमें है और उसके आसपासके बहुतसे गाँवों में साँचोरा चौहानोंकी ज़मीदारी है। इनका पाटवी चीतलवानेका राव है। For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy