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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान-वंश । लिखा होता है । जनरल कनिंगहामका अनुमान है कि शायद ये सिक्के अजयपाल नामक तँबरवंशी राजाके होंगे। __ जयदेवकी रानीका नाम सोमलदेवी था । इसको सोमलेखा भी कहते थे । पृथ्वीराजविजयमें लिखा है कि इसको सिक्के ढलवानेका बड़ा शौक था। चौहानोंके अधीनके देशसे इसके भी चाँदी और ताँबेके सिक्के मिलते हैं इन पर उलटी तरफ 'श्रीसोमलदेवि ' या 'श्रीसोमलदेवी' लिखा होता है । और सीधी तरफ 'गधिये ' सिक्कोंपरके गधेके खुरके आकारका बिगड़ा हुआ राजाका चेहरा बना होता है । किसी किसी पर इसकी जगह सवारका आकार बना रहता है। जनरल कनिंगहाम साहबने इनपरके लेखको ‘सोमलदेव' पढ़कर इनको किसी अन्य राजाके सिक्के समझ लिये थे । परन्तु इण्डियन म्यूजियमके सिक्कोंकी कैटलौग ( सूची ) में उन्होंने जो उक्त सिक्कोंके चित्र दिये हैं उनमेंसे दो सिक्कोंमें सोमलदेवि पढ़ा जाता है। रापसन साहब इन सिक्कोंको दक्षिण कोशल ( रत्नपुर ) के हैहय ( कलचुरी ) राजा जाजल्लदेवकी रानीके अनुमान करते हैं; क्योंकि उसका नाम भी सोमलदेवी था । परन्तु ये सिक्के वहाँ पर नहीं मिलते हैं । इनके मिलनेका स्थान अजमेरके आसपासका प्रदेश है । अतः रापसन साहबका अनुमान ठीक प्रतीत नहीं होता। इसका समय वि० सं० ११६५ ( ई० स० ११०८ ) के आस पास होगा। २५-अर्णोराज। यह अजयराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसको आनाक, आनलदेव और आनाजी भी कहते थे। इसके तीन रानियाँ थी । पहली मारवाड़की सुधवा, दूसरी गुजरातके सोलंकी राजा (१) C. I. M., Pl. VI, 10-11, (२) J, R. A. S., A. D. 1900, P. 121. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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