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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौहान-वंश। होकर यह शरीर छोड़ दिया। उपर्युक्त कर्णका राज्यकाल वि० सं० ११२० से ११५० (ई० स० १०६३ से १०९३) तक था। अतः दुर्लभ राज्यका भी उक्त समयके मध्य विद्यमान होना सिद्ध होता है। प्रबन्धकोशके अन्तकी वंशावलीमें लिखा है कि दूसल (दुर्लभराज) गुजरातके राजा कर्णको पकड़ कर अजमेरमें ले आया। परन्तु यह बात सत्य प्रतीत नहीं होती। २२-वीसलदेव (तृतीय)। यह दुर्लभराजका छोटा भाई और उत्तराधिकारी था। इसका दूसरा नाम विग्रहराज (तृतीय) भी था। वीसल-देवरासा नामक भाषाके काव्यमें इसकी रानी राजदेवीको मालवेके परमार राजा भोजकी पुत्री लिखा है और साथ ही उसमें इन दोनोंका बहुतसा कपोलकल्पित वृत्तान्त भी दिया है। अतः यह पुस्तक ऐतिहासिकोंके विशेष कामकी नहीं है । हम पहले ही लिख चुके है कि राजा भोज वीर्यरामका समकालीन था। इसलिए वीसलदेवके समय मालवेपर उदयादित्यके उत्तराधिकारी लक्ष्मदेव या उसके छोटेभाई नरवर्मदेवका राज्य होगा। ___ फरिश्ताने लिखा है कि वीलदेव (वीसलदेव ) ने हिन्दुराजाओंको अपनी तरफ मिलाकर मोदुदके सूबेदारोंको हाँसी, थानेश्वर और नगरकोटसे भगा दिया था। इस युद्ध में गुजरातके राजाने इसका साथ नहीं दिया, इसलिए इसने गुजरात पर चढ़ाई कर वहाँके राजाको हराया,और अपनी इस विजयकी यादगारमें वीसलपुर नामक नगर बसाया। यह नगर अब तक विद्यमान है। प्रबन्धकोशके अन्तमें दी हुई वंशावलीमें लिखा कि वीसलदेवेने एक पतिव्रता ब्राह्मणीका सतीत्व नष्ट किया था। इसीके शापसे यह कुष्ठसे पीड़ित होकर मृत्युको प्राप्त हुआ। २३५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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