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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेम-वंश। होना लिखा है । पर माधवसेन और केशवसेनके नाम नहीं लिखे । सम्भव है, माधवसेन और केशवसेन, अपने पिताके समयमें ही भिन्न भिन्न प्रदेशोंके शासक नियत कर दिये गये हों। इसीसे अबुलफज़लने उनका राज्य करना लिख दिया हो । और यदि वास्तवमें इन्होंने राज्य किया भी होगा तो बहुत ही अल्प समय तक । पूर्वोक्त ताम्रपत्रमें विश्वरूपसेनको लक्ष्मणसेनका उत्तराधिकारी, प्रतापी राजा और यवनोंका जीतनेवाला, लिखा है । उसमें उसकी निम्नलिखित उपाधियाँ दी हुई हैं अश्वपति, गजपति, नरपति, राजत्रयाधिपति, परमेश्वर, परमभारक, महाराजाधिराज, अरिराज-वृषभाङ्कशङ्कर और गौड़ेश्वर ।। इससे प्रकट होता है कि यह स्वतन्त्र और प्रतापी राजा था । सम्भव है, लक्ष्मणसेनके पीछे उसके बचे हुए राज्यका स्वामी यही हुआ हो । तबकाते नासिरीमें लिखा है "जिस समय ससैन्य बख्तियार खिलजी कामरूद ( कामरूप ) और तिरहुतकी तरफ गया उस समय उसने मुहम्मद शेरां और उसके भाईको फौज देकर लखनौर ( राढ ) और जाजनगर (उत्तरी उत्कल ) की तरफ भेजा । परन्तु उसके जीतेजी लखनौतीका सारा इलाका उसके अधीन न हुआ।” अतएव, सम्भव है, इस चढ़ाईमें मुहम्मद शेरां हार गया हो, क्योंकि विश्वरूपसेनके ताम्रपत्रमें उसे यवनोंका विजेता लिखा है । शायद उस लेखका तात्पर्य इसी विजयसे है। यदि यह बात ठीक हो तो लक्ष्मणसेनके बाद वङ्गदेशका राजा यही हुआ होगा और माधवसेन तथा केशवसेन विक्रमपुरके राजा न होंगे, किन्तु केवल भिन्न भिन्न प्रदेशोंके ही शासक रहे होंग । __ यद्यपि अबुलफज़लने विश्वसेनका नाम नहीं लिखा तथापि उसका १४ वर्षसे अधिक राज्य करना पाया जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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