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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेन-वंश। हाथसे जल आदि न पीनेका पुराना रिवाज उठा दिया जाय । इस आज्ञाके निकलने पर उच्च वर्णके लोगोंने कैवर्तों के साथ परहेज़ करना छोड़ दिया। केवौकी प्रतिष्ठा-वृद्धिका एक कारण और भी था । बल्लालसेनका पुत्र लक्ष्मणसेन अपनी सौतेली माँसे असन्तुष्ट होकर भाग गया था । उस समय इन्हीं कैवर्तीने उसका पता लगानेमें सहायता दी थी। ये लोग बड़े बहादुर थे । उत्तरी बङ्गालमें ये लोग बहुत रहते थे। इससे उनके उपद्रव आदि करनेका भी सन्देह बना रहता था । परन्तु पूर्वोक्त आज्ञा प्रचलित होने पर ये लोग नौकरीके लिए इधर उधर बिखर गये । इन्हींने पालवंशी महीपालको कैद किया था। ___ बल्लालसेनने उनके मुखिया महेशको महामण्डलेश्वरकी उपाधि दी थी और अपने सम्बन्धियों सहित उसे दक्षिणघाट (मण्डलघाट ) भेज दिया था। कैवौकी इस पदवृद्धिको देख कर मालियों, कुम्भकारों और लुहारोंने भी अपना दरजा बढ़ानेके लिए राजासे प्रार्थना की। इस पर राजाने उन्हें भी सच्छूद्रोंमें गिननेकी आज्ञा दे दी । उसने स्वयं भी अपने एक नाईको ठाकुर बनाया।" सोनार-बनियों के साथ किये गये बरतावके विषयमें भी लिखा है कि ये लोग ब्राह्मणोंका अपमान किया करते थे। उनका मुखिया बल्लालके शत्रु मगधके पालवंशी राजाका सहायक था। मुखियाने अपनी पुत्रीका विवाह भी पाल राजासे किया था । ___ उपर्युक्त वृत्तान्त बल्लाल-चरितके कर्ता अनन्त-भट्टने शरणदत्तके ग्रन्थसे उद्धृत किया है। यह ग्रन्थ बल्लालसेनके समयमें ही बना था। अतः उसका लिखा वर्णन झूठ नहीं हो सकता । २०७ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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