SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश हैं। उनमें एक तो महेन्द्रपालके राज्यके आठवें वर्षका रामगयम' और दूसरी उन्नीसवें वर्षका गुनरियामें मिला है । तीसरा लेख गोविन्दपाल नामक राजाके राज्यके चौदहवें वर्षका, अर्थात् विक्रम संवत् १२३२ का गयामें मिला है। ये नरेश भी पालवंशी ही होने चाहिए। पूर्वोक्त लेखोंके अतिरिक्त एक लेख गयामें नरेन्द्र यज्ञपालका भी मिला है। पर वह पालवंशी नहीं, ब्राह्मण था । वह विश्वरूपका पुत्र और शूद्रकका पौत्र था । इस विश्वरूपका दूसरा नाम विश्वादित्य भी था । यह राजा नयपालके समयमें विद्यमान था, ऐसा उसके लेखेसे पाया जाता है। समाप्ति। जनरल कनिङ्गहामका अनुमान है कि पालवंशका अन्तिम राजा इन्द्रद्युम्न था । परन्तु यह नाम इस वंशके लेखों आदिमें कहीं नहीं मिलता । अतएव उक्त नाम दन्तकथाओंके आधार पर लिखा गया होगा। सेनवंशियोंने बङ्गालका बड़ा हिस्सा और मिथिलाप्रान्त, ईसवी सनकी बारहवीं शताब्दीमें, पालवंशियोंसे छीन लिया था, जिससे उनका राज्य केवल दक्षिणी विहारमें रह गया था। इस वंशका अन्तिम राजा गोविन्दपाल था। उसे सन् ११९७ ईसवी ( विक्रम संवत् १२५४ ) के निकट बख्तियार खिलजीने हराया और उसकी राजधानी औदन्तपुरीको नष्ट कर दिया। चातुर्मास्यके कारण जितने बौद्ध भिक्षु ( साधु ) वहाँके विहारमें थे उन सबको भी उसने मरवा डाला ! इस घटनाके बाद भी, कुछ समय तक, गोविन्दपाल जीवित था; परन्तु उसका राज्य नष्ट हो चुका था। (१)0. A.S. R., Vol. III. I. 123. (२) C. A. S. R., Vol. III, P. 124. (३) 0. A. S. R, Vol. III, PI. XXXVII. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy