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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाल-वंश। १६-रामपाल । यह शूरपालका छोटा भाई था। उसके पीछे राज्यका मालिक हुआ : यद्यपि इसके पूर्व के दोनों राजाओंके समयमें पाल-राज्यकी बहुत कुछ अवनति हो चुकी थी-राज्यका बहुत सा भाग शत्रुओंके हाथोंमें जा चुका था-तथापि रामपालने उसकी दशा फिरसे सुधारी । नेपालमें 'रामचरित' नामक एक संस्कृत-काव्य मिला है। यह काव्य रामपालके सान्धिविग्रहिक प्रजापति नन्दीके पुत्र, सन्ध्याकर नन्दी, ने लिखा था । इस काव्यके प्रत्येक श्लोकके दो अर्थ होते हैं । एक अर्थसे रघुकुलतिलक रामचन्द्र और दूसरेसे उक्त पालवंशी राजा रामपालके चरितका ज्ञान होता है । उसमें लिखा है कि__“गद्दी पर बैठते ही रामपालने कैवर्त राजा भीमदिवौक पर चढ़ाई करनेका विचार किया। रामपालका मामा राठौर मथन ( महन ) पालराज्यमें एक बड़े पद पर था । उसके दो पुत्र महामण्डलेश्वर ( बड़े सामन्त) और एक भतीजा शिवराज महाप्रतीहार था। वह रामपालका बड़ा ही विश्वासपात्र था । पहले वारेन्द्रमें जाकर उसने शत्रुकी गतिविधिका ज्ञान प्राप्त किया। फिर चढ़ाईका प्रबन्ध होने लगा । पालराज्य के सब सामन्त बुलवाये गये । कुछ ही समयमें वहाँ पर दण्डभुक्तिका राजा आकर उपस्थित हुआ । दण्डभुक्ति उस रियासतका नाम रहा होगा जिसका मुख्य स्थान दण्डपुर होगा और जिसे आजकल बिहार कहते हैं । इसी दण्डभुक्तिके राजाने उत्कलके राजा कर्णको हराया था। मगध ( मगधके एक हिस्से ) का राजा भीमयशा भी आया । इसने कन्नौजके सवारोंको मारा था। पीठिका राजा वीरगुण भी आ गया । इसको दक्षिणका राजा लिखा है । देवनामका राजा विक्रम, आटविक (जङ्गलसे भरे हुए) प्रदेश और मन्दार-पर्वतका स्वामी लक्ष्मीशूर, तैला १३ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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