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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश विग्रहपाल तीसरेके समयके आमगाछी (दिनाजपुर जिले ) में मिले हुए ताम्रपत्रसे प्रकट होता है कि " महीपालक पिताका राज्य दूसरोंने छीन लिया था। उस राज्यको महीपालने पीछेसे हस्तगत किया और अपने भुजबलसे लड़ाईके मैदानमें शत्रुओंको हरा कर उनके सिर पर अपना पैर रक्खा ।" महीपालके समयका दूसरा ताम्रपत्रं दीनाजपुरमें मिला है । इस राजाके राज्यके पाँचवें वर्षकी लिखी हुई " अष्टसाहस्त्रिका "प्रज्ञापारमिता " नामक एक बौद्ध पुस्तक इस समय केम्ब्रिजके विश्वविद्यालयमें है और ग्यारहवें वर्षका एक शिलालेख बुद्धगयामें मिला है । परन्तु यह कहना कठिन है कि ये दोनों महीपाल, पहलेके, समयके हैं अथवा दूसरेके समयके । इसके पुत्रका नाम नयपाल था। १२-नयपाल। यह महीपाल ( पहले ) का पुत्र था । उसके पीछे यही राज्यका अधिकारी हुआ। इसके राज्यके चौदहवें वर्षका लिखा हुआ पञ्चरक्षा नामक एक बौद्धग्रन्थ इस समय केम्ब्रिज-विश्वविद्यालयमें है और पन्द्रहवें वर्षका एक शिलालेख बुद्धगयामें मिला है। __ आचार्य-दीपाङ्कुर श्रीज्ञान, जिसका दूसरा नाम अतिशा था, इसी नयपालका समकालीन था । इस आचार्यके एक शिष्यके लेखसे प्रकट होता है कि पश्चिमकी तरफसे राजा कर्णने मगध पर चढ़ाई की थी। यद्यपि मूलमें कर्ण्य लिखा है तथापि शुद्ध पाठ कर्ण ही उचित प्रतीत होता है; क्योंकि हैहयोंके लेखोंसे सिद्ध है कि चेदिके राजा कर्णने बङ्ग देशपर चढ़ाई की थी। नयपालके पुत्र विग्रहपाल ( तीसरे ) की कर्ण (R) Ind. Ant., Vol. XV, ५. 98. (२). B.A.S., vol. 61, p. 82. (३)A.S. J., Vol. III, p. 122, and Ind. Ant., Vol. IX. p. 114 ४J. Bm. A.S., for 1900 ph.191-192. १९० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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