SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश नाम नहीं दिया, तथापि यह वर्णन विग्रहपालका ही होना चाहिए; और, इसी लेखमें जो शूरपालका नाम लिखा है वह भी विग्रहपालका ही दूसरानाम होना चाहिए । डाक्टर कीलहानका अनुमान है कि इस लेखमें कहे हुए गौड़के राजासे देवपालका ही तात्पर्य है । परन्तु उस समय तो केदारपाणीका दादा दर्भपाणी प्रधान था । इसलिए उनका यह अनुमान ठीक नहीं प्रतीत होता। विग्रहपालकी स्त्रीका नाम लज्जा था । वह हैहयवंशकी थी। जनरल कनिंगहामका अनुमान है कि राज्यपाल और शूरपाल ये दोनों देवपालके पुत्र और क्रमानुयायी होंगे तथा शूरपालके पीछे जयपालका पुत्र विग्रहपाल राजा हुआ होगा । परन्तु जितने लेख और ताम्रपत्र उक्त वंशके राजाओंके मिले हैं उनसे पूर्वोक्त जनरलका अनुमान सिद्ध नहीं होता। इसके पुत्र का नाम नारायणपाल था। ७-नारायणपाल । यह विग्रहपालका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसने पूर्वोक्त केदार मिश्रके पुत्र गुरव मिश्रको बड़े सम्मानसे रक्खा था । नारायणपालके भागलपुरवाले ताम्र-पत्रको दूतक भी यही गुरव मिश्र है । इस राजाके समयके दो लेख और भी मिले हैं। उनमेंसे एक लेख इस राजाक राज्यके सातवें वर्षका है । पूर्वोक्त ताम्र-पत्र उसके राज्यके सत्रहवें वर्षका है । यद्यपि यह राजा बौद्ध था तथापि इसने बहुतसे शिवमन्दिर बनवाये और उनके निर्वाह के लिए बहुतसे गाँव भी प्रदान किये थे। इसके पुत्रका नाम राज्यपाल था । (१)A. S. R., Vol. xv, p. 149. (२) Ine. Ant., Vol. xv, P. 305, and J. B. A. S. Vol. 47. (३) A. S.J., Vol. III, and - Ep. Ind., Vol, II, P. 161, For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy