SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमारोंकी वंशावली। नंबर नाम परस्परका सम्बन्ध ज्ञात समय समकालीन राजा | उपेन्द्र (कृष्णराज) परमार-वंशमें वैरिसिंह, प्रथम नं. १ का पुत्र सीयक, प्रथम नं. २ का पुत्र वाक्पतिराज, प्रथम नं. ३ का पुत्र | परिसिंह द्वितीय (बजट) नं. ४ का पुत्र सीयक, द्वितीय (श्रीहर्ष) नं० ५ का पुत्र ७ वाक्पतिराज, द्वितीय (मुज) नं. ६ का पुत्र वि० सं० १०२९ राठोड़ खोटिंगदेव, वि० सं० १८१८ वि० सं० १०६१,१०० | चौलुक्य तैलप, दूसरा ३३,१०५० चेदिका राजा हैहय युराज ८ सिन्धुराज ( सिन्धुल) ९ भोज, प्रथम नं. ७ का भाई नं. ८ का पुत्र वि० सं० १०७८, १०९९ कलचुरी-गाङ्गेयदेव और कर्णदेव; चौलुक्य भीमदेव प्रथम, जयासह दूसरा और सोमेश्वर प्रथम; चहुमान वीर्यराम,कोकल्ल चेदीका (ई०स० १०४२ के कर्ण चेदीके दानपत्रसे) १. | जयसिंह प्रथम ११ उदयादित्य न० १२ का भाई १२ लक्ष्मदेव | नरवर्मदेव यशोवर्मदेव १५ जयवर्मा प्रथम लक्ष्मीवर्मा हरिश्चन्द्र उदयवर्मा अजयवर्मा विन्ध्यवर्मा सुभटबमो अर्जुनवर्मा नं. ९ का उत्तरा- । वि० सं० १११२ कलचुरी-कर्ण; चौलुक्य-मीम धिकारी नं. ९ का कुटुम्बी वि० सं० १११६, ११. | कलचुरी-कर्ण; चौहान-दुर्लभ तीसरा; ३५, ११४३ . चौलुक्य-सोमेश्वर और विक्रमादिस्य छठा; चौलुक्य-भीम और कर्ण; गुहिल विजयसिंह नं० ११ का पुत्र - वि० सं० ११६१ लक्ष्मदेव कलचुरी-यशःकर्णदेव के समयका नरवर्मदेवकाले० वि० सं० ११६१, ११६४ चौलुक्य-जयसिंह (सिद्धराज) नं० १३ का पुत्र वि० सं० ११९१,११९२ चौलुक्य जयसिंह (सिद्धराज) नं० १४ का पुत्र नं. १५ का भाई वि० सं० १२०० चौलुक्य-कुमारपाल वि० सं० १२३५, १२३६ / चौलुक्य-अजयपाल नं. १७ का पुत्र वि० सं० १२५६ नं. १५ का भाई का पुत्र चौलुक्य-भीम दूसरा; यादव-सिंथण नं० (१७) का पुत्र , वि० सं० १२६५, १२७० जयसिंह (गुजरातका) १२७२ | वि० सं० १२७५, १२८२, शम्सुद्दीन अल्तमश १२८५, १२८६, १२० नं० १६ १८ का पुत्र देवपालदेव जयसिंह, द्वितीय(जयतुगीदेव) नं० १९ का पुत्र वि० सं० १३००, १३१२ जयवर्मा, द्वितीय | नं. २. का भाई | वि० सं० २३१४, १३१७ जयसिंह, तृतीय नं० २१ का उत्तरा- पि० सं० १३२६ धिकारी भोज, द्वितीय नं. २२ का उत्तरा चहुआन-हम्मीर, वि.सं. ११४५ धिकारी २४ | जयसिंह, चतुर्थ नं. २३ का उत्तरा- वि.सं. १३६६ धिकारी | For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy