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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार । चढुवानोंने मुसलमानोंकी अधीनताको अनुचित समझा । इससे वे पृथ्वीराजके पोते गोविन्दराजकी अध्यक्षतामें रणथंभोर चले गये । ई० स० १३०१ में उसे भी मुसलमानोंने छीन लिया । तारीख-ए-फीरोजशाहीके लेखानुसार हम्मीरको, जो उस समय रणथंभोरका स्वामी था, अलाउद्दीन खिलजीने मार डाला । ऐसा भी कहा जाता है कि मालवेके राजाको चहुवान वाग्भटको मारनेकी अनुमति दी गई थी। परन्तु वाग्भट बचकर निकल गया । यद्यपि यह स्पष्टतया नहीं कह सकते कि उस समय मालवेका राजा कौन था, तथापि वह राजा जयसिंह ( तृतीय ) हो तो आश्चर्य नहीं । इसका बदला लेनेको ही शायद, कुछ वर्ष बाद, हम्मीरने मालवेपर चढ़ाई की होगी। ___ हम्मीर चहुवान वाग्भटका पोता था। वि. स. १३३९ ( ई० स० १२८२) में यह राज्यपर बैठा । इसने अंनक हमले किये । इसके द्वारा धारापर किये गये हमलेका वर्णन कविने इस प्रकार किया है:-" उस समय वहाँपर कवियोंका आश्रयदाता भोज ( दूसरा) राज्य करता था । उसको जीतकर हम्मीर उज्जैनकी तरफ चला । वहाँ पहुँचकर उसने महाकालके दर्शन किये । फिर वहाँसे वह चित्रकूट (चित्तौड़ ) की तरफ रवाना हुआ । फिर आबूकी तरफ जाते हुए मेदपाट ( मेवाड़ ) को उसने बरबाद किया। यद्यपि वह वेदानुयायी था, तथापि आबूपर पहुँचकर उसने पहाड़ीपर प्रतिष्ठित जैनमान्दरके दर्शन किये। ऋषभदेव और वस्तुपालके मन्दिरोंकी सुन्दरताको देख कर उसके चित्तमें बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अचलेश्वर महादेवके भी दर्शन किये । तदनन्तर आबूके परमार-राजाको अपने अधीन करक वहाँसे हम्मीर वर्धमानपुरकी तरफ चला । वहाँ पहुँचकर उसने उस नगरको लूटा।" For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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