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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार । उसके पिताका नाम बासिल लिखा है तथा उसके फतह किये जानेकी तारीख हि० स० ६३० (वि० सं० १२८९, पौष) सफर . महीना, तारीख २६, मङ्गलवार, लिखी है । इन बातोंसे प्रकट होता है कि यद्यपि कछवाहोंके पीछे गवालियर मुसलमानोंके हाथमें चला गया था, तथापि देवपालदेव के समयमें उस पर परमारोंहीका अधिकार था । इसमें अल्तमश को उसे घेर कर पड़ा रहना पड़ा। शमसुद्दीन के लौट जाने पर देवपाल ही मालवेका राजा बना रहा । ऐसी प्रसिद्धि है कि इन्दोरसे तीस मील उत्तर, देवपालपुर में देवपालने एक बहुत बड़ा तालाब बनवाया था । इसका उत्तराधिकारी इसका पुत्र जयसिंह ( जेतुगी ) देव हुवा | २० - जयसिंहदेव ( दूसरा ) | यह अपने पिता देवपालदेवका उत्तराधिकारी हुआ । इसको जंतुगीदेव भी कहते थे। जयन्तसिंह, जयसिंह, जैत्रसिंह और जेतुगी ये - सब जयसिंह के ही रूपान्तर हैं । यद्यपि इस राजाका विशेष वृत्तान्त नहीं मिलता तथापि इसमें सन्देह नहीं कि मुसलमानोंके दबावके कारण 1. इसका राज्य निर्बल रहा होगा । वि० सं० १३१२ ( ई० स० १२५५) का इसका एक शिलालेख राहतगढ़ में मिला है । इसीके समयमें, वि०सं० - १३०० में आशाधरने धर्मामृतकी टीका समाप्त की । २१ - जयवर्मा (दूसरा ) । यह जयसिंहका छोटा भाई था । वि० सं० १३१३ के लगभग यह राज्यासनपर बैठा । वि० सं० १३१४ ( ई० स० १२५७ ) का एक लेख-खण्ड मोरी गाँव में मिला है । यह गाँव इन्दोर-राज्य के भानपुरा जिलेमें है । इसमें लिखा है कि माघवदी प्रतिपदा के दिन जयवर्मा द्वारा ( १ ) Ind. Ant, Vol. XX, P. 84. ( २ ) Parmars of Dhar and Malwa, p. 40. १६३ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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