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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश मन्दिर था ( यह मन्दिर अब कमाल मौला मसजिदमें परिवर्तित हो गया है)। वहीं पर प्रथम बार यह खेल खेला गया था। पूर्वोक्त जयसिंह गुजरातका सोलंकी जयसिंह होगा। भीमदेवसे इसने अनहिलवाड़ेका राज्य छीन लिया था। परन्तु अनुमान होता है कि कुछ समय बाद इसे हटा कर अनहिलवाड़े पर भीमने अपना अधिकार कर लिया था। वि०सं० १२८० का जयसिंहका एक ताम्रपत्र मिला है। उसमें उसका नाम जयन्तसिंह लिखा है, जो जयसिंह नामका दूसरा रूप है। प्रबन्धचिन्तामणिमें लिखा है कि भीमदेवके समयमें अर्जुनवर्माने गुजरातको बरबाद किया था। परन्तु अर्जुनवर्माके वि०सं० १२७२ तकके ताम्रपत्रोंमें इस घटनाका उल्लेख नहीं है । इससे शायद यह घटना वि०सं० १२७२ के बाद हुई होगी। वि०सं० १२७५ का एक लेख देवपालदेवका मिला है। अतएव अर्जुनवर्माका देहान्त वि०सं० १२७२ और १२७५ के बीच किसी समय हुआ होगा । इसने अमरुशतक पर रसिक-सञ्जीवनी नामकी टीका बनाई थी, जो काव्यमालामें छप चुकी है। १९-देवपालदेव ।। यह अर्जुनवर्माका उत्तराधिकारी हुआ । इसके नामके साथ ये विशेषण पाये जाते हैं:-"समस्त-प्रशस्तोपेतसमधिगतपञ्चमहाशब्दालङ्कारविराजमान"। इनसे प्रतीत होताहै कि इसका सम्बन्ध महाकुमार लक्ष्मीवर्माके वंशजोंसे था, न कि अर्जुनवर्मासे । क्योंकि ये विशेषण उन्हीं महाकुमारोंके नामोंके साथ लगे मिलते हैं। इससे यह भी अनुमान होता है कि शायद अर्जुनवर्माके मृत्युसमयमें कोई पुत्र न था इसलिए उसके मृत्युके (१) Ind. Ant., Vol. VI, P. 196. १६० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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