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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ 'ख' शाखाके राजा । १५- अजयवर्मा | मालवेके परमार । इसने अपने भाई जयवर्मा से राज्य छीना और अपने वंशजोंकी नई ' व ' शाखा चलाई । यह 'ख' शाखा लक्ष्मीवर्माकी प्रारम्भकी हुई ८ क' शाखा से बराबर लड़ती झगड़ती रही । उस समय धारापर अधिकार था । इसलिये यह विशेष महत्त्व - < इसी ख , शाखाका की थी । १६ - विन्ध्यवर्मा | यह अजयवर्माका पुत्र था | अर्जुनवमी के ताम्रपत्र में यह 'वीरमूर्धन्य लिखा गया है । इसने गुजरातवालोंके आधिपत्यको मालवेसे हटाना चाहा । ई०सं० १९७६ में गुजरातका राजा अजयपाल मर गया । उसके मरते ही गुजरातवालोंका अधिकार भी मालवेपर शिथिल हो गया। इससे मालवेके कुछ भागों पर परमारोंने फिर दखल जमा लिया | परन्तु यशोवर्मा के समय से ही वे सामन्तोंकी तरह रहने लगे | मालवे पर पूरी प्रभुता उन्हें न प्राप्त हो सकी । सुरथोत्सव नामक काव्य में सोमेश्वरने विन्ध्यवर्मा और गुजरातवालों के बीच वाली लड़ाईका वर्णन किया है । उसमें लिखा है कि चौलुक्योंके सेनापतिने परमारोंकी सेनाको भगा दिया तथा गोगस्थान नामक गाँवको बरबाद कर दिया | विन्ध्यवर्मा भी विद्याका बड़ा अनुरागी था । उसके मन्त्रीका नाम बिल्हण था । यह बिल्हण विक्रमाङ्कदेवचरितके कर्ता, काश्मीरके बिल्हण कविसे, भिन्न था । अर्जुनवर्मा और देवपालदेव के समय तक यह इसी पद पर रहा । मांडूमें मिले हुए विन्ध्यवर्मा के लेखमें बिल्हण के लिए लिखा है: १५५ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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