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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार। यह निर्बल राजा था । इस कारण इधर तो उस पर गुजरातवालोंका दबाव पड़ा और उधर उसके भाईने बगावत की। इससे वह अपनी रक्षा न कर सका। ऐसी हालतमें उसको गद्दीसे उतार कर उसके स्थान पर उसके भाई अजयवर्माने अधिकार कर लिया । अजयवर्मासे परमारोंकी 'ख' शाखाका प्रारम्भ हुआ; तथा इसी उतार चढ़ावमें उसके दूसरे भाई लक्ष्मीवर्माने जयवर्मासे मिल कर कुछ परगने दबा लिये । उससे 'क' शाखा चली । अपने ताम्रपत्रोंमें इस 'क' शाखाके राजाने जयवर्माको अपना पूर्वाधिकारी लिखा है । इस प्रकार मालवेके परमारराजाओंकी दो शाखायें चली: १४-यशोवर्मा (क) ....... (ख) १५-जयवर्मा १६- लक्ष्मीवर्मा १७-हरिश्चन्द्र १८–उदयवर्मा (१५)--अजयवर्मा (१६)--विन्ध्यवर्मा (१७)-सुभटवर्मा (१८)-अर्जुनवर्मा १९-देवपालदेव (हरिश्चन्द्रदेवका पुत्र ) 'क' शाखाके लेखोंका क्रम इस प्रकार है: पूर्वोक्त वि० सं० ११९१ (ई० स० ११३४ ) के यशोवर्माके दानपत्रके बादके जयवर्माके दान-पत्र का प्रथम पत्र मिला है। यद्यपि इसमें संवत् न होनेसे इसका ठीक समय निश्चित नहीं हो सकता, तथापि (१) Ind. Ant., Vol. XIX, p. 353. (२) Ep. Ind., Vol. I, p. 350. For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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