SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश दूसरा दानपत्र वि० सं० ११९२, ( ई० स० ११३५), मार्गशीर्ष बदी तीजका है । इसका दूसरा ही पत्रा मिला है। इसमें मोमलादेवीके मृत्यु-समय सङ्कल्प की हुई पृथ्वीके दानका जिक्र है । शायद यह मोमलादेवी यशोवर्माकी माता होगी। उस समय यशोवर्माका प्रधान मन्त्री राजपुत्र श्रीदेवधर था । १५-जयवर्मा। यह अपने पिता यशोवर्माका उत्तराधिकारी हुआ। परन्तु उस समय मालवेपर गुजरातके चौलुक्य राजाका अधिकार हो गया था । इसलिए शायद जयवर्मा विन्ध्याचलकी तरफ चला गया होगा। ई० स०११४३ से ११७९ के बीचका, परमारोंका, कोई लेख अबतक नहीं मिला। अतएव उस समय तक शायद मालवे पर गुजरातवालोंका अधिकार रहा होगा । __ यशोवर्माके देहान्तके बाद मालवाधिपतिका खिताब बल्लालदेवक नामके साथ लगा मिलता है । परन्तु न तो परमारोंकी वंशावलीमें ही यह नाम मिलता है, न अब तक इसका कुछ पता ही चला है कि यह राजा किस वंशका था। जयसिंहकी मृत्युके बाद गुजरातकी गद्दीके लिए झगड़ा हुआ । उस झगड़ेमें भीमदेवका वंशज कुमारपाल कृतकार्य हुआ । मेरुतुङ्गके मतानुसार सं० ११९९, कार्तिक वदि २, रविवार, हस्त नक्षत्र, में कुमारपाल. गद्दी पर बैठा । परन्तु मेरुतुङ्गकी यह कल्पना सत्य नहीं हो सकती। __कुमारपालके गद्दी पर बैठते ही उसके विरोधी कुटुम्बियोंने एक व्यूह बनाया । मालवेका बल्लालदेव, चन्द्रावती ( आबूके पास ) का परमार राजा विक्रमसिंह और साँभरका चौहान राजा अर्णोराज इस व्यूहके सहायक हुए । परन्तु अन्तमें इनका सारा प्रयत्न निष्फल हुआ। विक्रमसिंहका राज्य उसके भतीजे यशोधवलको मिला । यह यशोधवल कुमार(१) Bombay Caz., Gujrat, pp. 181--194. १५० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy