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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश पुत्र उत्पन्न हुए । बघेली पर उदयादित्यकी विशेष प्रीति थी। उसका पुत्र रणधवल ज्येष्ठ भी था । इससे वही राज्यका उत्तराधिकारी हुआ। सापत्न्यकी ईर्ष्याके कारण सोलकिनी और उसके पुत्र जगदेवको बघेली यद्यपि सदा दुःख देनेके उद्योगमें रहती थी तथापि उदयादित्य अपने छोटे पुत्र जगदेवको कम प्यार न करता था । __उदयादित्य माण्डवगढ़ (माँडू) के राजाका सेवक था। इस कारण, एक समय, उसे कुछ काल तक माँडूमें रहना पड़ा । उन्हीं दिनों जगदेवका विवाह टोंक-टोडाके चावड़ा राजा राजकी पुत्री वीरमतीके साथ हो गया। इससे बघेलीका देष और भी बढ़ गया । यह दशा देख कर जगदेव धाराको छोड़ कर अपनी स्त्री-सहित पाटण ( अणहिल-पाटनअणहिलवाड़ा ) के राजा सिद्धराज जयसिंहके पास चला गया । सिद्ध. राजने उसकी वीरता और कुलीनताके कारण बड़े आदरके साथ उसको, ६०००० रुपया मासिक पर, अपने पास रख लिया । जगदेव भी तन मनसे उसकी सेवा करने लगा। वहाँ जगदेवके दो पुत्र हुए-जगधवल और बीजधवल । इन पर भी सिद्धराजकी पूर्ण कृपा थी। __एक बार भाद्रपद मासकी घनघोर अँधेरी रातमें एक तरफसे ४ स्त्रियोंके रोनेकी और दूसरी तरफसे ४ स्त्रियोंके हँसनेकी आवाज सिद्धराजके कानमें पड़ी। इस पर सिद्धराजने जगदेव आदि अपने सामन्तोंको, जो उस समय वहाँ उपस्थित थे, आज्ञा दी कि इस रोने और हँसनेका वृत्तान्त प्रातःकाल मुझसे कहना । यह सुनकर सब लोग वहाँसे रवाने हो गये । उनके चले जाने पर सिद्धराजने सोचा कि देखना चाहिए ये लोग इस भयानक रातमें इन घटनाओंका पता लगानेका साहस करते हैं या नहीं। यह सोच कर वह भी गुप्त रीतिसे घटनास्थलकी तरफ रवाना हुआ। इधर रोने और हँसनेवाली स्त्रियोंका पता लगानेकी आज्ञा राजासे १३४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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