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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश पूर्वोक्त दानपत्रका समय है । तीसरा, वि० सं० १०९९ (१०४२ ईसवी) जब राजमृगाङ्क नामक ग्रन्थ बना था। ___ इससे प्रतीत होता है कि भोज वि० सं०१०९९(१०४२ ईसवी) तक विद्यमान था । उसके उत्तराधिकारी जयसिंहका दानपत्र वि० सं०१११२ (१०५५ ईसवी ) का मिला है । जयसिंहने थोड़े ही समय तक राज्य किया था। इससे भोजका देहान्त वि० सं० १११० या ११११ (१०५३ या १०५४ ईसवी ) के आसपास हुआ होगा । डाक्टर बूलरने भोजके राज्यका प्रारम्भ १०१० ईसवी (वि० सं० १०६७ ) से माना है । परन्तु यदि इसका राज्यारम्भ (वि० सं० १०५७) १००० ई० से माना जाय तो भोजका राज्य-काल उसके विषयमें कही गई भविष्यद्वाणीसे मिल जाता है । वह वाणी यह है:-- पञ्चाशत्पञ्चवर्षाणि सप्तमासं दिनत्रयम् । भोजराजेन भोक्तव्यः सगौड़ो दक्षिणापथः ॥ अर्थात् भोज ५५ वर्ष, ७ महीने और ३ दिन राज्य करेगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ बादमें ही कही जाती हैं । तारीख फरिश्तासे भी पूर्वोक्त आनन्दपालकी मददसे१००९ में इसका होना सिद्ध होता है । राजतरङ्गिणीकारने उस पुस्तकके सातवें तरङ्गमें काश्मीरके राजा कलशके वृत्तान्तमें निम्नलिखित श्लोक लिखा है: स च भोजनरेन्द्रश्च दानोत्कर्षेण विश्रुतौ । सूरी तस्मिन्क्षणे तुल्य द्वावास्तां कविबान्धवौ ॥ २५९ ॥ अर्थात् उस समय भोज और कलश दोनों बराबरीके दानी, विद्वान और कवियोंके आश्रयदाता थे । इसी प्रकार विक्रमाङ्कदेवचरितमें भी एक श्लोक है: यस्य भ्राता क्षितिपतिरितिक्षात्रतेजोनिधानम् । भोजमाभृत्सदृशमाहमा लोहराखण्डलोऽभूत् ॥ ४२॥ १२४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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