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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवेके परमार। यद्धृत्यमात्रविजितानवलो [क्य] मौला दोष्णां बलानि कथयन्ति न [योद्धृ] लो [कान् ] ॥ अर्थात् भोजने चेदीश्वर, इन्द्ररथ, भीम, तोग्गल, कर्णाट और लाटके राजा, गुजरातके राजा और तुरुष्कोंको जीता। भोजका समकालीन चेदीका राजा, १०३८ से १०४२ ईसवी तक, कलचुरी गाङ्गेयदेव था। उसके बाद, १०४२ से ११२२ तक, उसका लड़का और उत्तराधिकारी कर्णदेव था, जिसकी राजधानी त्रिपुरी थी । इन्द्ररथ और तोग्गलका कुछ पता नहीं चलता कि वे कौन थे। भीम अणहिलवाड़ेका चौलक्य भीमदेव (प्रथम) था, जिसका समय १०२२ से १०६३ ईसवी है। कर्णाटका राजा जयसिंह दूसरा था, जो १०१८ से १०४० तक विद्यमान था। उसका उत्तराधिकारी सोमेश्वर (प्रथम) १०४० से १०६९ तक रहा। तुरुष्कोंसे मुसलमानोंका बोध होता है, क्योंकि बहुतसे दूसरे लेखोंमें भी यह शब्द उन्हींके लिए प्रयोग किया गया है। राजवल्लभने अपने भोजचरितमें लिखा है कि जब भोजने राज्यकार्य ग्रहण कर लिया तब मुञ्जकी स्त्री कुसुमवती (तैलपकी बहिन) के प्रबन्धसे भोजके सामने एक नाटक खेला गया। उसमें तैलप द्वारा मुनका वध दिखलाया गया। उसे देखकर भोज बहुत ही क्रुद्ध हुआ और कुसुमवतीको मरदानी पोशाकमें अपने साथ लेकर तैलप पर उसने चढ़ाई की और उसे कैद करके मार भी डाला। इसके बाद कुसुमवतीने अपनी शेष आयु सरस्वती नदीके तीर पर बौद्ध संन्यासिनके वेशमें बिताई। यह कथा कवि-कल्पित जान पड़ती है, क्योंकि मुझको मारनेके बाद तैलप ९९७ ई० में ही मर गया था, जब भोज बहुत छोटा था। यह तैलपका पौत्र, विक्रमादित्य पश्चम ( कल्याणका राजा) हो सकता है। उसका राजत्वकाल १००९ से १०१८ तक था। सम्भव है, उस पर चढ़ाई करके भोजने उसे पकड़ लिया हो और मुञ्जका बदला लेने के लिए उसे For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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