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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश है कि अपने भतीजे भोज पर मुञ्जकी बहुत प्रीति थी । इसीसे उसने उसको अपना युवराज बनाया था। तैलप और उसके सामन्तोंके लेखोंसे भी' पाया जाता है कि तैलपने ही मुञ्जको मारा था, जैसा कि प्रबन्धचिन्तामणिकारने लिखा है । परन्तु मेरुतुङ्गने वह वृत्तान्त बड़े ही उपहसनीय ढंगसे लिखा है । शायद गुजरात और मालवाके राजाओंमें वंशपरम्परासे शत्रुता रही हो । इसीसे शायद प्रबन्धचिन्तामणिके लेखकने मुञ्जकी मृत्यु आदिका वृत्तान्त उस तरह लिखा हो। __ मालवेके लेखोंमें, नवसाहसाङ्कचरितमें और काश्मीर-निवासी बिल्हण कविके विक्रमाङ्कदेवचरितमें मुञ्जकी मृत्युका कुछ भी हाल नहीं है। सम्भव है, उस दुर्घटनाका कलङ्क छिपानेहीके इरादेसे वह वृत्तान्त न लिखा गया हो। - संस्कृत-ग्रन्थों और शिला-लेखों में प्रायः अच्छी ही बातें प्रकट की जाती हैं । पराजय इत्यादिका उल्लेख छोड़ दिया जाता है । परन्तु पिछली बातोंका पता विपक्षी और विजयी राजाओंके लेखोंसे लग जाता है । __ मुञ्ज स्वयं विद्वान था । वह विद्वानोंका बहुत बड़ा आश्रयदाता था । उसके दरबारमें धनपाल, पद्मगुप्त, धनञ्जय, धनिक, हलायुध आदि अनेक विद्वान थे। __ मुञ्जकी बनाई एक भी पुस्तक अभी तक नहीं मिली । परन्तु हर्षदेवके पुत्र-वाक्पतिराज, मुञ्ज और उत्पल-के नामसे उद्धृत किये गये अनेक श्लोक सुभाषितावलि नामक ग्रन्थ और अलङ्कारशास्त्रकी पुस्तकोंमें मिलते हैं। (१) J. R. A. S., Vol. IV., p. 127-J. A., Vol. XXI, P.. 168, E. G. I., Vol. II., p. 218. (२) Ep. Ind, Vol. I, P. 227. १०० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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