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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश इस श्लोकको पढ़ते ही मुझको बहुत पश्चात्ताप हुआ और भोजको पीछे बुला कर उसने उसे अपना युवराज बनाया । कुछ समय बाद तैलङ्ग देशके राजा तैलपने' मुखके राज्य पर चढ़ाई की । मुञ्जने उसका सामना किया | उसके प्रधान मन्त्री रुद्रादित्यने, समय बीमार था, राजाको गोदावरी पार करके आगे न बढ़की कसम दिलाई | परन्तु मुञ्जने पहले १६ दफे तैलप पर विजय प्राप्त किया था, इस कारण घमण्ड में आकर मुख गोदावरीसे आगे बढ़ गया । वहाँ पर तैलपने छल से विजय प्राप्त करके मुञ्जको कैद कर लिया और अपनी बहिन मृणालवतीको उसकी सेवामें नियत कर दिया । कुछ दिनों बाद मुख और मृणालवती आपसमें प्रेम के बन्धन में बँध गये । मुखके मन्त्रियोंने वहाँ पहुँच कर उसके रहने के स्थान तक सुरङ्गका मार्ग बना दिया | उसके बन जाने पर, एक दिन मुअने मृणाल"वती से कहा कि मैं इस सुरङ्गके मार्ग से निकलना चाहता हूँ । यदि तू भी मेरे साथ चले तो तुझको अपनी पटरानी बना कर मुझ पर किये गये तेरे इस उपकारका बदला हूँ । परन्तु मृणालवतीने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी मध्यमावस्था के कारण यह अपने नगरमें ले जाकर मेरा निरादर करने लगे । अतएव उसने मुझसे कहा कि मैं अपने आभू णों का डिब्बा ले आऊँ, तबतक आप ठहरिए । ऐसा कहकर वह सीधी अपने भाई के पास पहुँची और उसने सब वृत्तान्त कह सुनाया । यह सुनकर तैलपने मुझको रस्सी से बँधवाकर उससे शहरमें घर घर भीख मँगवाई | फिर उसको वधस्थानमें भेजा और कहा कि अब अपने इष्टदेवकी याद कर लो । यह सुनकर मुञ्जने इतना ही उत्तर दिया कि :लक्ष्मीर्यास्यति गोविन्दे वीरश्रीवरवेश्मनि । गते मुझे यशःपुजे निरालम्बा सरस्वती ॥ -- ( १ ) इसकी माता युवराज दूसरेकी बहन थी । ९८ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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