SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश प्रबन्धचिन्तामणि और भोजप्रबन्धमें इस विदुषीका होना राजा भोजके समयमें लिखा है। परन्तु, सम्भव है कि वह कृष्णराजके समयमें ही हुई हो; क्योंकि भोजप्रबन्ध आदिमें कालिदास, बाण, मयूर, माघ आदि भोजसे बहुत पहलेके कवियोंका वर्णन इस तरह किया गया है जैसे वे भोजके ही समयमें विद्यमान रहे हों । अत एव सीताका भी उसी समय होना लिख दिया गया हो तो क्या आश्चर्य है। कृष्णराजके समयका कोई शिला-लेख अबतक नहिं मिला, जिससे उसका असली समय मालूम हो सकता । परन्तु उसके अनन्तर छठे राजा मुञ्जका देहान्त विक्रम संवत् १०५० और १०५४ ( ईसवी सन् ९९३ और ९९७)के बीचमें होना प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पण्डित गौरीशङ्कर हीराचन्द ओझाने निश्चित किया है । अतएव यदि हम हर एक राजाका राज्य-समय २० वर्ष मानें तो कृष्णराजका समय वि०सं०९१०और ९३० (८५३ और ८७३ई.) के बीच जापड़ेगा । परन्तु कप्तान सी० ई०. लूअर्ड, एम० ए० और पण्डित काशीनाथ कृष्ण लेलेने डाकर बूलरके मतानुसार हर एक राजाका राजत्वकाल २५ वर्ष मान कर कृष्णराजका समय ८००-८२५ ई० निश्चित किया है। २-वैरिसिंह यह राजा अपने पिता कृष्णराजके पीछे गद्दी पर बैठा । (१)सोलकियोंका प्राचीन इतिहास, भाग १, पृ० ७७ । (२)जैन-हरिवंशपुराणमें, जिसकी समाप्तिशक-संवत् ७०५ (वि० सं० ८४० = ई. स. ७८३ )में हुई, लिखा है कि उस समय अवन्तीका राजा वत्सराज था । इससे उक्त संवत्के बाद. परमारोंका अधिकार मालवे पर हुआ होगा । (३) परमार आव् धार एंड मालवा, पृष्ट ४६ । ( ४ ) तत्सूनुरासीदरिराजाकुम्भिकण्ठीरवो वीर्यवतां वरिष्ठः । श्रीवरिसिंहश्चतुरणवान्तधात्र्यां जयस्तम्भकृतप्रशस्तिः[८] (एपि० इण्डि०, जि० १, भा० ५) ९० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy