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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतके प्राचीन राजवंश Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किराके परमार | विक्रम संवत् १२१८ के किराडूके लेखसे प्रकट होता है कि कृष्णराज द्वितीय से परमारोंकी एक दूसरी शाखा चली । उक्त लेखमें इस शाखाके राजाओं के नाम इस प्रकार मिलते हैं: १ - सोछराज | यह कृष्णराजका पुत्र था और बड़ा दाता था । २- उदयराज | यह सोछराजका पुत्र था । यही उसका उत्तराधिकारी हुआ । यह बड़ा वीर था । इसने चोल ( Coromandal Coast ), गौड़ (उत्तरी बङ्गाल ), कर्णाट ( कर्नाटक और माइसोर राज्यके आसपासका देश ) और मालवेका उत्तर-पश्चिमी प्रदेश विजय किया । यह सोलङ्की सिद्धराज जयसिंहका सामन्त था । ३- सोमेश्वर ! यह उदयराजका पुत्र था । उसका उत्तराधिकारी भी यही हुआ । यह भी बड़ा वीर था । इसने जयसिंहकी कृपासे सिन्धुराजपुर के राज्यको फिरसे प्राप्त किया । कुमारपालकी कृपासे उसे इसने दृढ़ बना लिया । इसने किराड़में बहुत समय तक राज्य किया । विक्रम संवत् १२१८ के आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा, गुरुवारको, डेढ़ पहर दिन चढ़े इसने राजा जज्जकसे सत्रह सौ घोड़े दण्डके लिये । उससे दो किले भी तणुकोट ( तणोट – जैसलमेर में ) और नवसर ( नौसर -- जोधपुर में ) इसने छीन लिये | अन्तर्भे जज्जकको चौलुक्य कुमारपालके अधीन करके वे स्थान उसे लौटा दिये । ये बातें इसके समय के पूर्वोक्त लेखसे प्रकट होती हैं । वि० सं० १९६३ ( ईसवी सन १९०५) मार्गशीर्ष वदि ११ का एक लेख सिरोही - राज्य के सांगारली गाँवमें मिला है। यह सोछरा (सोछराज ) के पुत्र दुर्लभराज समयका है। पर, इसमें इस राजाकी जातिका उल्लेख नहीं । अतः यह राजा कौन था, इस विषय पर हम कुछ नहीं कह सकते। (१) यह लेख बहुत टूटा हुआ है । अतः सम्भव है कि इसकी पीढ़ियोंके पढ़ने में कुछ गड़बड़ हो जाय । ८४ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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