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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश अर्थात् — उत्पलराज किराडू छोड़ कर ओसियाँ नामक गाँवमें जा बसा । सचियाय नामक देवी उस पर प्रसन्न हुई; उसे धन बतलाया । इसके बदले उसने ओसियाँमें एक मन्दिर बनवा दिया । ३- आरण्यराज । यह अपने पिता उत्पलराजका उत्तराधिकारी था । ४- कृष्णराज प्रथम । यह आरण्यराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । सिरोही - राज्यके वसन्तगढ़ नामक किलेके खँडहर में एक बावड़ी है । उसमें विक्रम-संवत् १०९९ का, पूर्णपालके समयका, एक लेख है । लेखमें लिखा है: अस्यान्वये ह्युत्पलराजनामा आरण्यराजोऽपि ततो बभूव । तस्मादभूदद्भुत कृष्णराजो विख्यातकीर्तिः किल वासुदेवः ॥ अर्थात् - इस ( धूमराज ) के वंशमें उत्पलराज हुआ । उसका पुत्र आरण्यराज और आरण्यराजका पुत्र अद्भुत गुणोंवाला कृष्णराज हुआ । प्रोफेसर कीलहार्नने इस राजाका नाम अद्भुत कृष्णराज लिखा है; पर यह उनका भ्रम है | इसका नाम कृष्णराज ही था । अद्भुत शब्द तो केवल इसका विशेषण है। इसके प्रमाणमें विक्रम संवत् १३७८' की आबू के ' विमलवसही ' नामक मन्दिरकी प्रशस्तिका यह श्लोक हम नीचे देते हैं: तदन्वये कान्हडदेववीरः पुराविरासीत्प्रबलप्रतापः ॥ अर्थात् — उसके वंश में वीर कान्हड़देव हुआ । कान्हड़देव कृष्णदेव - - काही अपभ्रंश है; अद्भुत कृष्णदेवका नहीं । इससे यह मालूम हुआ कि उसे कान्हड़देव भी कहते थे । ( १ ) Ep. Ind., Vol. IX, p. 148. ७० For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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