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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और खरोष्ठी लिपि सिकन्दरके पीछे उसी तरह इस देशमें दाखिल हुई थीं; जिग्य तरह मुसलमानी राज्यमें अरबी, फारसी और तुर्की आघुसी थी। मगर भारतकी असल लिपि ब्राह्मी होनेसे मुसलमानी सिक्कोंपर भी कई सौ बरसों तक उसीके बदले हुए रूप हिन्दी अक्षर लिखे जाते थे। सिकन्दरने ईरान फतह करके पंजाब तक दखल कर लिया था और अपने एशियाई राज्यकी राजधानी ईरानमें रखकर ईरानियोंके बड़े राज्यको कई सरदारोंमें बाँट दिया था; जो सेतरफ कहलाते थे। मुसलमानी इतिहासोंमें इनको ‘तवायफुलमलूक ' अर्थात् फुटकर राजा लिखा है। इनमें अशकानी घरानेके राजा मुख्य थे और वे ही हिन्दुस्थानमें आकर शक कहलाने लगे थे। उन्होंने ही विक्रम सम्वत् १३५ में शक सम्वत चलाया था। यही शक सम्वत् अबतकके मिले हुए क्षत्रपोंके १२ लेखों और ( शक सम्वत् १०० से ३०४ तकके ) सिक्कोंमें मिलता है ! ३०० वर्षी तक क्षत्रपोंका राज्य रहा था । ईरानमेंके पारसियोंके पुराने शिला-लेखोंमें और आसारे अजम' नामक प्रन्यमें क्षत्रप शब्दकी जगह 'क्षापीय' शब्द लिखा है । यह भी क्षत्रप शब्दसे मिलता हुआ ही है और इसका अर्थ वादशाह है। खरोष्ठी लिपि अरवी फारसीकी तरह दहनी तरफसे बाईं तरफको लिखी जाती थी। इसीका दूसरा नाम गांधारी लिपि भी था । सम्राट अशोकके कई लेख इस लिपिमें लिखे गये हैं। परन्तु पारसके पुराने लेखोंकी लिपि हिन्दीकी तरह बाईसे दाई तरफको लिखी जाती थी। इस लिपिके अक्षर कीलके माफिक हानसे यह — माखी ' नामस प्रसिद्ध है। गुजरातके पारसियोंने इसका नाम 'कालोरीकी लिपि' रक्खा है । इससे भं वहीं मतलब निकलता है। उसका नमूना पृथक दिया जाता है। १. सतरफ़ शब्द बहुत पुराना है । जरदश्त नामेंके तीसरे खण्डमें लिखा है कि बादशाह दराएस ( दारा ) ने जिसकी फतहका झण्डा सिंध नदीके किनारेसे थिसली ( यूरप ) के किनारेतक फहराता था अपनी इस इतनी बड़ी अमलदारीको २० सूबोंमें बांटकर एक एक सूबा एक एक सतरफको सौंप दिया था: जिनसे यह खिराजके मिवाय दूसरी लागें भी लिया करता था । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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