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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैहय-वंश। संकम, आहवमल्ल, सिंघण और वज्रदेव । इसके एक कन्या भी थी। उसका नाम सिरिया देवी था। इसका विवाह सिंहवंशी महामण्डलेश्वर चावंड दूसरेके साथ हुआ था। वह येलबर्ग प्रदेशका स्वामी था । सिरियादेवी और वज्रदेवीकी माताका नाम एचलदेवी था। विज्जलदेवके समयके कई लेख मिले हैं। उनमेंका अन्तिम लेख वर्तमान श०सं० १०९१ (वि० सं० १२२५) आषाढ़ बदी अमावास्या ( दक्षिणी ) का है। उसका पुत्र सोमेश्वर उसी वर्षसे अपना राज्यवर्ष ( सन-जुलूस ) लिखता है । अतएव विज्जलदेवका देहान्त और सोमेश्वरका राज्याभिषेक वि० सं० १२२५ में होना चाहिए । यह सोमेश्वर अपने पिताके समयमें ही युवराज हो चुका था। ४-सोमेश्वर (सोविदेव )। यह अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ। इसका दूसरा नाम सोविदेव था । इसके खिताब, ये थे-भुजबलमल्ल, रायमुरारी, समस्तभुवनाश्रय, श्रीपृथ्वीवल्लभ, महाराजाधिराज परमेश्वर और कलचुर्य-चक्रवर्ती । ___ इसकी रानी सावलदेवी संगीतविद्यामें बड़ी निपुण थी । एक दिन उसने अनेक देशोंके प्रतिष्ठित पुरुषोंसे भरी हुई राजसभाको अपने उत्तम गानसे प्रसन्न कर दिया। इस पर प्रसन्न होकर सोमेश्वरने उसे भूमिदान करनेकी आज्ञा दी। यह बात उसके ताम्रपत्रसे प्रकट होती है। इस देशमें मुसलमानोंका आधिपत्य होनेके बादसे ही कुलीन और राज्यघरानोंकी स्त्रियों से संगीतविद्या लुप्त होगई है । इतना ही नहीं, यह विद्या अब उनके लिये भूषणके बदले दूषण समझी जाने लगी है । परन्तु प्राचीन समयमें स्त्रियोंको संगीतकी शिक्षा दी जाती थी। तथा यह शिक्षा स्त्रियों के लिये भूषण भी समझी जाती थी । इसका प्रमाण रामायण, कादंबरी, मालविकाग्निमित्र और महाभारत आदि संस्कृत साहित्यके अनेक प्राचीन ग्रन्थोंसे मिलता है । तथा कहीं कहीं प्राचीन शिलालेखोंमें For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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