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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश कल्याणके हैहयवंशी। दक्षिणके प्रतापी पश्चिमी चौलुक्य राजा तैलप तीसरेसे राज्य छीनकर कुछ समय तक वहाँपर कलचुरियोंने स्वतन्त्र राज्य किया । उस समय इन्होंने अपना खिताब 'कलिजरपुरवराधीश्वर' रक्खा था । इनके लेखोंसे प्रकट होता है कि ये डाहल ( चेदी ) से उधर गए थे। इस लिए ये भी दक्षिण कोशलके कलचुरियोंकी तरह चेदीके कलचुरियोंके ही वंशज होंगे। तैलपसे राज्य छीननेके बाद इनकी राजधानी कल्याण नगरमें हुई । यह नगर निजामके राज्यमें कल्याणी नामसे प्रसिद्ध है । इनका झण्डा सुववृषध्वज ' नामसे प्रसिद्ध था। इनका ठीक ठीक वृत्तान्त जोगम नामके राजासे मिलता है । इससे पूर्वके वृत्तान्तमें बड़ी गड़बड़ है; क्योंकि हरिहर ( माइसोर ) से मिले हुए विज्जलके समयके लेखसे ज्ञात होता है कि, डाहलके कलचुरि राजा कृष्णके वंशज कन्नम (कृष्ण) के दो पुत्र थे-विज्जल और सिंदराज। इनमेंसे बड़ा पुत्र अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ । सिंदराजके चार 'पुत्र थे-अमुंगि, शंखवर्मा, कन्नर और जोगम। इनमेंसे अमुंगि और जोगम क्रमशः राजा हुए। जोगमका पुत्र पेर्माडि (परमर्दि ) हुआ । इस पेसडिके पुत्रका नाम विज्जल थी । विज्जलके ज्येष्ठ पुत्रका नाम सोविदव ( सोमदेव ) था । इसके श० सं० १०९५ (वि० सं० १२३० ) के लेखमें लिखा है:_ चन्द्रवंशी संतम ( संतसम ) का पुत्र सगररस हुआ । उसका पुत्र कन्नम हुआ। कन्नमके, नारण और विज्जल दो पुत्र हुए । विज्जलका पुत्र कर्ण और उसका जोगम हुआ। परन्तु श० सं० १०९६ ( गत) और ११०५ ( गत ) ( वि० सं० १२३१ और १२४० ) के ताम्रपत्रों(१) माइसोर इन्सक्रिप्शन्स पृ० ६४ । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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