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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतके प्राचीन राजवंश दक्षिण काशलके हैहय । पहले, कोकल्लदेवके वृत्तान्तमें लिखा गया है कि, कोकल्लके १८ पुत्र थे । उनमेंसे सबसे बड़ा पुत्र मुग्धतुङ्ग अपने पिता कोकल्लदेवका उत्तराधिकारी हुआ और दूसरे पुत्रोंको अलग अलग जागीरें मिलीं। उनमेंसे एकके वंशज कलिङ्गराजने दक्षिण-कोशल ( महाकोशल ) में अपना राज्य स्थापन किया । कलिङ्गराजके वंशज स्वतन्त्र राजा हुए। १-कलिङ्गराज । यह कोकल्लदेवका वंशज था। रत्नपुरके एक लेख से ज्ञात होता है कि, दक्षिण-कोशल पर अधिकार करके तुम्माण नगरको इसने अपनी राजधानी बनाया। (दूसरे लेखोंसे इलाकेका नाम भी तुम्माण होना पाया जाता है ) इसके पुत्रका नाम कमलराज था । २-कमलराज । यह कलिङ्गराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था । ३-रत्नराज ( रत्नदेव प्रथम)। यह कमलराजका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । तुम्माणमें इसने रत्नेशका मंदिर बनवाया था, तथा अपने नामसे रत्नपुर नामका नगर भी बसाया था, वही रत्नपुर कुछ समय बाद उसके वंशजोंकी राजधानी बना । रत्नराजका विवाह कोमोमण्डलके राजा वजूककी पुत्री नोनल्लासे हुआ था । इसी नोनल्लासे पृथ्वीदेव ( पृथ्वीश ) ने जन्म ग्रहण किया। ४-पृथ्वीदेव (प्रथम)। यह रत्नराजका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसने रत्नपुरमें एक तालाव और तुम्माणमें पृथ्वीश्वरका मन्दिर बनवाया था। पृथ्वीदेवने For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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