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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैहय-वंश । मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ हूँ। तुम मेरी तरफसे ये हाथी, घोड़े और भोजका सुवर्ण-मण्डपिका ले जाकर भीमके भेट करना और साथ ही यह भी कहना कि वे मुझे अपना मित्र समझें ।" परन्तु हेमचन्द्रका लिखा उपर्युक्त वृत्तान्त सत्य मालूम नहीं होता । क्योंकि चेदिपरकी भीमकी चढ़ाईके सिवाय इसका और कहीं भी जिकर नहीं है । और प्रबन्धचिन्तामणिकी पूर्वोक्त कथासे साफ जाहिर होता है कि, जिस समय कर्णने मालवे पर चढ़ाई की उस समय भीमको सहायतार्थ बुलाया था । और वहाँ पर हिस्सा करते समय उन दोनोंके बीच झगड़ा पैदा हुआ था; परन्तु सुवर्णमण्डपिका और गणपति आदि देवमूर्तियाँ देकर कर्णने सुलह कर ली। इसके सिवाय हेमचन्द्रने जो कुछ भी भीमकी चेदिपरकी चढ़ाईका वर्णन लिखा है वह कल्पित ही है । हेमचन्द्रने गुजरातके सोलंकी राजाओंका महत्त्व प्रकट करनेको ऐसी ऐसी अनेक कथाएँ लिख दी हैं, जिनका अन्य प्रमाणोंसे कल्पित होना सिद्ध हो चुका है। काश्मीरके बिल्हण कविने अपने रचे विक्रमाङ्कदेवचरित काव्यमें डाहलके राजा कर्णका कलिभरके राजाके लिये कलिरूप होना लिखा है। ___ प्रबोधचन्द्रोदय नाटकसे पाया जाता है कि, चेदिके राजा कर्णने, कलिञ्जरके राजा कीर्तिवर्माका राज्य छीन लिया था । परन्तु कीर्तिवर्माके मित्र सेनापति गोपालने कर्णके सैन्यको परास्त कर पीछे उसे कलिभरका राजा बना दिया। बिल्हणकविके लेखसे पाया जाता है कि पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथमने कर्णको हराया। उल्लिखित प्रमाणोंसे कर्णका अनेक पड़ोसी राजाओंपर विजय प्राप्त करना सिद्ध होता है । उसकी रानी आवल्लदेवी हूणजातिकी थी। उससे यशःकर्णदेवका जन्म हुआ। (१) विक्रमांकदेवचरित, सर्ग १८, श्लो० ९३ । ४९ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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