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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूपप्रकरणम् ] पश्चमो भागः अथ शकारादिधूपप्रकरणम् (७४८९) शरपुडादिधूपः तांबेकी मूसलीसे घोटें और उसे घीमें मिलालें । ( वैद्या. । वि. १०) | इसको धूप देनेसे आंखोंकी पीडा, अश्रुनाव, किर किराहट और शोथका नाश होता है। शरपुडाजटाधूपदानात्कासः पलायते ।। कान्तावक्षोजसंस्पर्शायमिनां निगमो यथा ॥ (७४९१ ) शिरीषादिधूपः सरफोंकेकी जड़ की धूप देनेसे कास इस (ग. नि. । ज्वरा. १) प्रकार नष्ट हो जाती है जिस प्रकार रमणीके शिरीषवीजजम्बाम्रकपिस्थार्जुनपल्लवैः। स्तनोंका स्पर्श करनेसे व्रतधारियोंका नियम। पुराख्यशल्लकैर्धपः सर्वज्वरग्रहापहः ।। ___ (७४९०) शिग्रुपल्लवादिधूपः । सिरसके बीज, जामनके पत्ते, आमके पत्ते, ( व. से. । नेत्ररोगा.) कैथके पत्ते, अर्जुनके पत्ते, गूगल और शल्लकी शिग्रुपल्लवनिर्यासः सुपिष्टस्ताम्रसम्पुटे। वृक्षका गोंद समान भाग लेकर सबको एकत्र घृतेन धूपितो हन्ति शोथवर्षाश्रुवेदनः ॥ मिलाकर धूप देनेसे समस्त ज्वर और ग्रहदोषोंका सहजनेके पत्तोंके रसको ताम्रपात्रमें डालकर नाश होता है । इति शकारादिधूपप्रकरणम् --------crorea अथ शकाराद्यञ्जनप्रकरणम् (७४९२) शङ्खनाभ्याद्या वतिः मूत्रमें घोटकर गोलियां बनावें और छायामें ( ग. नि. । नेत्ररोगा. ३) इन्हें आंखमें आंजनेसे तिमिर, पिचिट, फूला जनाभी वचा पथ्या मरिचं कुष्ठमक्ष ना। और पटल नामक नेत्ररोग नष्ट होते हैं। मज्जैताः समभागेन संपिष्वा नरवारिणा ॥ पटिकां कारयेत्तेन छायाशुष्कां तदानात् । (७४९३) शङ्खपुष्पादिवटी तिमिरं पिचिटं पुष्पं पटलं संप्रणश्यति ।। ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४८ ) शंखनाभि, बच, हर्र, कालीमिर्च, कूल और शङ्खपुष्पी तथा रो] शङ्खनाभिर्मनःशिला । बहेड़ेकी मागी; इनके समान भाग चूर्ण का मनुष्यके काचिकेन तु सम्पिप्टा छायाशुष्का भिषग्य। सुखा लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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