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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www. kobatirth.org भारत - भैषज्य - र ( ७४७२) शिरीषादिलेप: (३) (व. से. । विषा. ) शैरीषस्य च मूलं वा सक्षौद्रं तण्डुलाम्बुना ॥ अङ्कोटस्य वा मूलं बस्तमूत्रेण कल्कितम् । पानालेपनयोरुक्तं सर्वाखुविषनाशनम् ॥ सिसकी जड़को चावलोंके पानी में पीस कर शहद में मिला कर लेप करनेसे अथवा अङ्कोटकी जड़ को बकरेके मूत्रमें पीस कर लेप करनेसे एवं इन ही दोनों योगोंको पिलाने से हर प्रकारका आखुविष (चूहेका विष) नष्ट होता है । (७४७३) शिरीषादिलेप: (४) (बृ. ना. ; व. से. । विस्फोटा. ; ग. नि. । विस्फो. ४० ) शिरीषोशीरनागाह्ण हिंस्राभिर्लेपनाद् द्रुतम् । विसर्पविषविस्फोटा: प्रशाम्यन्ति न संशयः ॥ ( वृ. मा. | मसूरिका. ) शिरीषोदुम्बराश्वत्थशेलुन्यग्रोधवत्सकैः । प्रलेपः सघृतः शीघ्रं वणवीसर्पदाहहा || | सिरसकी छाल, खस, नागकेसर और जटामांसी समान भाग ले कर, (पानी के साथ) बारीक पीस कर लेप करनेसे विसर्प, विष विकार और विस्फोटक अवश्य शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । ( ७४७४) शिरीषादिलेप: (५) | सिसकी छाल, गूलरकी छाल, पीपल वृक्षकी छाल, हिसोड़ेको छाल, बड़की छाल और कुड़ेकी - रत्नाकरः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छाल समान भाग ले कर बारीक मिला कर लेप करनेसे व्रण, वीसर्प शीघ्रही नाश हो जाता है । [ शकारादि पीस कर घीमें और दाहका (१४७५) शिरीषाष्टकः (ग. नि. । मसूरिका. ४१ ) निशाइयोशीरशिरीषमुस्तकैः सरोभद्रश्रियनागकेसरैः । संस्वेदविस्फोटविसर्पदौर्गन्ध्यरोमान्तिहरः प्रदेहः ॥ सिरसकी छाल, हल्दी, दारूहल्दी, खस, नागरमोथा, लोध, सफेद चन्दन और नागकेसर समान भाग ले कर लेप बनावें । यह लेप मसूरिका में हितकारी है और प्रस्वेद, विस्फोटक, विसर्प, कुष्ठ तथा दुर्गन्ध को नष्ट करता है । ( ७४७६) शिलापुष्पादिलेप, ( रा. मा. । शिरो. १ ) शिलाकुसुमकचूर निशाश्यामा नतैः समैः । पलितानां भवेत्कार्ण्य बहुशो गुडधूपितैः ॥ छारछरीला, कचूर, हल्दी, श्यामालता और तगर समान भाग कर सबको बारीक पीस कर बालों पर लेप करने और उन्हें बार बार गुड़की धूप (धुवा) देनेसे बाल काले हो जाते हैं । For Private And Personal Use Only (७४७७) शुष्ठयादिलेप: (१) ( वै. भ. र. । पटल १६ ) स्वरसेन काकमाच्याः पिष्टा शुण्ठी जयेत् कोठान् मुनितरुदलरसपिष्टा साच करीषस्य वा स्वरसे ॥
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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