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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७८ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य - रत्नाकरः ( ७४६१ ) शिग्रुत्वगादिलेपः (ग. नि. । श्वयध्व. २३) शिवस्वनक्तमालार्कदाय (मधमूलकैः । गोमूत्रयुक्तैः श्वयथुः प्रलेप्तव्यः कफाधिकः ॥ सइंजनेकी छाल, करञ्जकी छाल, आककी जड़, दारूहल्दी और अमलतासकी जड़ समान ले कर चूर्ण बनावें । भाग इसे गोमूत्र में पीस कर कफ प्रधान शोथ पर लेप करना हितकारी है । ( ७४६२) शिग्रुमूलादिलेप: (१) (व. से. | अर्बुदा. ) शिग्रुमूलकयोर्बीजं रक्षोघ्नं सरलं यवम् । अमारञ्च सम्पिष्य तक्रलेपोऽर्बुदादिजित् ॥ सहजने के बीज, मूली के बीज, सरसों, चीरका काष्ट, जौ और कनेरकी जड़ समान भाग चूर्ण बनावें । कर इसे तक में पीस कर लेप करनेसे अर्बुदादिका होता है। (७४६३) शिग्रुमूलादिलेपः (२) ( यो. र. । स्नायु.; यो त । त. ६७; वृ. यो त । त. १२४ ) शिग्रुमूलदलैः पिष्टेः काञ्जिकेन ससैन्धवैः । लेपः स्नायु रोगाणां शमनः परमः स्मृतः ॥ सहजनेकी छाल और पत्ते तथा सेंधा नमक [ शकारादि समान भाग ले कर सबको कांजीमें पीस कर लेप करनेसे स्नायुक (नहरने) का नाश होता है। ( ७४६४ ) शिवादिलेप: (१) ( भा. प्र. म. खं. २ । वातरक्ता . ) शिग्रुः सवरुणकरको धान्याम्नानिलार्तिजिल्लेपात् । भवति न वेति विकल्पो न विधेयः सिद्धयोगेऽस्मिन् ॥ सह जनेकी छाल और बरनेकी छालको कांजी में पीसकर लेप करनेसे वातरक्तकी पीड़ा नष्ट होती है। यह एक सिद्ध योग है । इसके विषय में सन्देह न करना चाहिये । (७४६५) शिवादि लेपः (२) ( भा. प्र. म. खं. २ | कर्णक सन्नि. ) शिराजिकयोः कल्कं कर्णमूले प्रलेपयेत् । कर्णमूलभवः शोथस्तेन लेपेन शाम्यति ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहजनेकी छाल और राईको पानी में पीस कर लेप करनेसे कर्णमूलकी सुजन नष्ट होती है । ( ७४६६) शिवादिलेप: (३) ( शो. सं. । खै. ३ अ. ११ ) शिग्रुशेफालिकैरण्डयवगोधूमसुद्गकैः । सुखोष्णो वहलो लेपः प्रयोज्यो वातविद्रधौ ॥ सहजनेकी छाल, हार सिंगारकी छाल, अरजौ, गेहूं और मूंग समान भाग ले कर ण्डमूल, चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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