________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
द्रष्टव्य
इस ग्रन्थ के तीसरे, चौथे और पांचवें भाग की टीका में जल, दुग्ध, तैलादि द्रव पदार्थों का परिमाण परिभाषा के अनुसार द्विगुण करके लिखा गया है, अर्थात् जहां मूलपाठ में १ प्रस्थ है वहां टीका में २ प्रस्थ (२ सेर) लिखा है, इत्यादि। परन्तु प्रथम और द्वितीय भाग में द्विगुण करके नहीं लिखा। अतएव उन भागों में हिन्दी टीका में द्रव पदार्थों का जितना परिमाण लिखा हो परिभाषा के अनुसार उससे द्विगुण लेना चाहिए।
प्रयोग-निर्माण के समय प्रथम भाग के परिशिष्ट में दिए हुए 'मान-परिभाषा' शीर्षक लेख को अवश्य पढ़ लेना चाहिए।
For Private And Personal Use Only