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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८४ १ सेर भैंसके धीमें यह कल्क और ४ सेर ( भैंसका ) दूध मिला कर पकावें । जब दूध जल जाए तो घृतको छान लें । यह घृत पित्तज हृद्रोगको नष्ट करता है । (७३९४) श्वदंष्ट्रा दिघृतम् (१) (बृ. यो त । त. ७७; वृ. मा. ; च. द. हृद्रोगो. ग. नि. । घृता. १ ; र. र. ; भै. र. । हृद्रोगा. ) ; www. kobatirth.org ले - भैषज्य रत्नाकरः *वदंष्ट्रोचीरमजिष्ठा बलाकाश्मर्यकतृणम् । दर्भमूलं पृश्निपर्णी जीवकर्षभकौ' स्थिरा ॥ पालिकं साधयेतेषां रसे क्षीरचतुर्गुणे । कल्कैः स्वताजी बन्तीमेदकर्ष भजीवकैः २ ॥ शतावर्वृद्धिमुदीका धर्करा श्रावणी बिलैः । प्रस्थः सिद्धो घृताद्वातपित्त नुग्राही शूलहृत् || मूत्रकृच्छ्रप्रमेहार्शः कालशोषक्षयापहः । धनुः श्रीमद्यमाराध्वखिन्नानां बलमांसदः ॥ 1 भारत-2 गोखरु, खस, मजीठ, खरैटीकी जड़, खम्भारीकी छाल, गन्ध तृण, दाभकी जड़, पृष्ठपर्णी, जीवक, ऋषभक और शालपर्णी ५--५ तोले ले कर ८ गुने पानीमें पकावें और चौथा भाग शेष रहने पर छान १ पलाशर्षभकौ इति पाठभेदः । २ जीवकके स्थान पर ज़ीरा है । २ सेर घीमें यह क्वाथ, ८ सेर दूध और निम्न लिखित कल्क मिला कर पकायें। जब पानी जल जाय तो घीको छान लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ शकारादि कल्क कौंच, जीवन्ती, मेदा, ऋषभक, - जीवक, शतावर, ऋद्धि, मुनक्का, खांड, गोरखमुण्डी और बिस ( कमलकन्द - भिसण्डा ) समान भाग मिश्रित १० तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें । यह घृत वातपित्तज रोग नाशक, ग्राही, शूलनाशक, तथा मूत्रकृच्छ्र, प्रमेह, अर्श, कास, शोष और क्षयको नष्ट करने वाला है । जो लोग धनुष चलाने, स्त्री समागम करने मद्य पीने, भार उठाने या मार्ग चलनेसे शिथिल हो गये हों उनमें यह घृत बल और मांसकी वृद्धि करता है । (७३९५) श्वदंष्ट्रादिद्युतम् (२) ( यो. र. । यक्ष्मा. ) श्वदंष्ट्र सदुरालभां चतस्रः पर्णिनीर्बलाम् । भागान्पलोन्मितान्कृत्वा पलं पर्यटकस्य च ॥ पचे दशगुणे तोये दशभागावशेषिते । रसे पूते तु द्रव्याणामेषां कल्कान्समावपेत् ।। सटीपुष्करमूलानां पिप्पलीत्रायमाणयोः । आमलक्याः किरातानां त्रिकस्य कटुकस्य च ॥ फलानां सारिवायाश्च सुपिष्ट्वा कर्षसम्मितान् । तैः साधयेद् घृतप्रस्थं क्षीरं द्विगुणितं भिषक् ।। ज्वरं दाहं तमः श्वासं कालं पार्श्वशिरोरुजम् । तृणां छर्दिमतीसारमेतत्सर्पिर्घ्यपोहति ॥ क्वाथ - गोखरु, धमासा, शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, मुद्गपर्णी, मात्रपर्णी, खरैटीकी जड़ और पित्त पापड़ा ५-५ तोले ले कर सबको २० गुने पानी में पकावें और दसवां भाग शेष रहने पर छान लें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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