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सरल योग)
कुष्ठ, रक्तविकार.] पञ्चमो भागः (चि.प.प.)
५७१ . ७४७७ शुण्ठ्यादि लेपः चकते और कोठ नाशक ८०६५ सैन्धवादिलेपः पैरोकी बिवाइ (पादसरल योग
दारी) को नष्ट करके ७४८१ शृङ्गवेरादिलेपः दाद
पैरोंको कोमल करता है। ७४८२ शैलेयादिलेपः स्रावयुक्त कुष्ठ ८०७० स्थौणेयकादिले० कण्डू । ७४८७ श्वित्रनाशकले० श्वित्र
८०७१ स्नुक् लेपः श्वित्र, दाद, ब्रण ७४८८ श्वित्रहर लेपः , (छाला डालने वाला ८०७३ स्नुह्यर्कादि लेपः कण्डू ।
८५५५ हयादि लेपः श्वेत कुष्ठ । ८०२२ सप्तामृत लेपः वातरक्त तथा अन्य कुष्ठ ८५५८ हरितालादिलेपः पुराने दाद और रकस ८०२८ सर्जादि लेपः अण्डकोषों की खुजली
(स्रावहीन कण्डू युक्त ८०३२ सर्षपकल्कलेपः विचर्चिका को अत्यन्त
कुंसियों) को शीघ्र नष्ट शीघ्र नष्ट करता है।
करता है। ८०३५ सवर्णकर्ता ले० श्वेत कुष्ठ । ८५५९ हरिद्रादिलेपः किटिभ कुष्ठ ८०४३ सिद्धार्थादिलेपः दाद
८५६४ हरीतक्यादिलेपः कुष्ठ
८५७७ हेमक्षीर्यादिलेपः पामा, दाद, खाज, ८०४५ सिध्महर लेपः सिध्म
विचर्चिका, रकस ८०४६ सिध्महर लेपः सिध्म ८०४७ सिध्महर लेपः सिध्मकी उत्तम औषध ।।
रस-प्रकरणम् ८०४८ सिमहर लेपः सिम
७५८० शशाङ्क रसः श्वेत कुष्ठ ८०५० सिन्दूराधो ले० पामा को शीघा नष्ट । ७५८२ शशाङ्कलेखादिले. समस्त कुष्ट
करता है । ७५८३ शशिलेखावटी स्वित्र (सरल योग)
७५९४ शिलाजतुयोगः वातरक्त ८०५१ सिंहास्यादिले० कन्छू को ३ दिनमै अ- ७५९७ शिलाजतुयोगः वातरक्त
वश्य नष्ट कर देता है। ७६२१ शिवा गुटी पुराना भयंकर वातरक्त, ८०५२ सुदर्शनामूल योगः स्वित्र ।
क्षय आदि बहुसंख्यक ८०५५ स्वर्णपुष्प्यादि लेपः स्वित्र ।
रोग
७७०० स्वित्र कुष्ठारिरसः श्वित्र कुष्ट ८०५७ सूतादि लेपः गजचर्म ।
७७०१ श्वित्रा रियोगः श्वित्र कुष्ठ ८०६१ सैन्धवादिलेपः दादको शोधा नष्ट
। ७७०२ रिवत्रारियोगः कुष्ठ जनित विकार ___करता है।
७७०३ स्वित्रारिरसः श्वित्र ८०६३ सैन्धवादिलेपः पामा, कण्डू । ७७०४ स्वित्रेभसिंहो रसः ,
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