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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः - (८७४५) क्षारताम्ररसः (३) (८७४६) क्षारयोगः (रे. र. स. । उ. अ. १८) (वृ. नि. र. । अजीर्णा.) रसेन ताम्रस्य दलानि लिप्त्वा द्वौ क्षारौ टङ्कणं मूतं लवङ्ग लवणत्रयम् । गंधेन ताम्रद्विगुणेन पश्चात् । पिप्पलीगन्धकं शुण्ठी मरीचं पलसम्मितम् ॥ वस्त्रेण बध्वाऽथ समुद्रजेन कर्षमेकं विषं दत्त्वा सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । क्षारत्रयेणापि च वेष्टयित्वा । अर्कदुग्धस्य दातव्या भावनयः सप्तवासरम ।। मृदा व संलिप्य पुटं ददीत अन्धमूषागजपुटे स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् । दलानि ताम्रस्य विचूर्णयेत् । ततो लवङ्ग मरिचं स्फटिकानां पलं पलम् ॥ धत्तूरचित्राकटुत्रयैश्च सर्व सम्म सुदृढ ढभाण्डे निधापयेत् । विमर्दयेचत्रिगुणप्रमाणम् ॥ सोयं गुमाद्वयं खादेद्भुक्तं द्रावयति क्षणात् ॥ पुनर्भोजनवाञ्छां च जनयेत्पहरोपरि । कलाप्रमाणेन विषं च दत्वा आममांसं द्रावयति श्लेष्मरोगनिकृन्तनः॥ वल्लं ददीतास्य च वातशूले ॥ जवाखार, सज्जीखार, सुहागेकी खोल, शुद्ध शुद्ध पारद १ भाग और शुद्ध गंधक २ भाग | पारद, लौंग, सेंधानमक, कालानमक, बिडलवण, लेकर कजली बनावें और ( उसे नीबूके रसमें | पीपल, शुद्ध गंधक, सोंठ और काली मिर्च ५-५ खरल करके ) १ भाग शुद्ध ताम्रपत्रों पर उसका तोले तथा शुद्ध बछनाग १ तोला लेकर प्रथम पारे लेप करके उन्हें कपड़ेमें लपेटकर पोटली बनावें । गंधकको कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य तथा उसे सामुद्र लवण, जवाखार, सञ्जोखार औषधियोंका चूर्ण मिलाकर खरल करें । तदनन्तर और सुहागे के समान भाग मिश्रित चूर्णके बीचमें उसे आकके दूधकी सात भावना देकर अंधमूषामें रखकर शरावसम्पुटम बन्द करक गजपुटम बन्द करके गजपुट में पकायें तत्पश्चात् उसमें ५-५ पकावें । और फिर स्वांगशीतल होने पर पीसकर तोले लौंगका चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और फिट. रख लें । ( यदि भस्म कच्ची हो तो पुनः पुट करीकी खील मिलाकर अच्छी तरह खरल करके लगावें । ) तत्पश्चात् उसे धतूरेके रस, चित्रकमूल सुरक्षित रक्खें । के क्वाथ, अदरकके रस और त्रिकुटेके क्वाथकी मात्रा-२ रत्ती। ३-३ भावना देकर उसमें उसका १६ वां भाग शुद्ध बछनाग मिलाकर खरल करें। यह अत्यन्त पाचक है । भोजनोपरान्त इसे खा लेनेसे १ पहर बाद पुनः भूख लग इसके सेवनसे वातज शूल नष्ट होता है। ' आती है। यह रस कच्चे मांस तकको भी पचा मात्रा-३ रत्ती। । देता है । कफरोगोंमें भी गुणकारी है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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