SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि मात्रा-१ माषा ( व्यवहारिक मात्रा- ( सुखाकर शराव संपुटमें बन्द करके ) मन्दाग्निमें १ रत्ती।) इसे काली मिचौके चूर्ण और शहदके स्वेदित करें। साथ सेवन करनेसे संग्रहणी, अतिसार, पाण्डु, तत्पश्चात् स्वांगशीतल होने पर निकालकर निर्बलता, गुल्म, श्वास, कास, हिक्का और अरुचि | उसमें उसका चौथा भाग शुद्ध बछनागका चूर्ण का नाश होता है। तथा उसके (गोलेके) बराबर कौड़ी भस्म मिलाकर औषध खानेके पश्चात् ५ माशे ( व्य. मा. अदरक और जंबीरी नीबूके रसमें १-१ दिन खरल १-३ माशे) भांगका चूर्ण शहद में मिलाकर चाट- | करके सुखाकर सुरक्षित रखें। ना चाहिये। मात्रा-१ माषा ( व्यवहारिक मात्रा(८६७८) हंसपोटलीरसः (३) ४ रत्ती) इसे काली मिरचोंके चूर्ण और शहदके साथ (र. का. धे. । संग्रहण्य.) | सेवन करनेसे ग्रहणी रोग, अतिसार, पाण्डु, रसगन्धकमुक्तानां विषस्यैकं पलं भवेत् । गुल्म और कृशताका नाश होता है । तीक्ष्णतुत्थकयोश्चैकं पलं तत्सुरसारसैः॥ ___औषध खानेके पश्चात् १ निष्क (व्यवहारिक विष्णुकान्तावविवाहिहलीभृङ्गविमर्दयेत् । मात्रा ३ माशा) भांगके चूर्णको शहदमें मिलाकर गोलं संस्वेदयेदस्य मन्दामौ चरणांशकम् ॥ चाटना चाहिये। विषं दग्यकपर्दानां चूर्ण तुल्यं नियोजयेत् । (८६७९) हंसभैरवरसः आजम्बीरनीरेण पिष्टं स्याद्धंसपोटलिः ॥ सोषणो वा समधुको माषोऽस्य ग्रहणीगदम्।। . (र. का. धे. । प्रमेहा.) अतिसारं पाण्डुरोगं गुल्मं कार्य ध्रुवं जयेत् ॥ सूकरीक्षीरपुटिते शुक्तिक्षारेण शोधिते । क्षौद्रेण विजयानिष्कमनुपानेन योजयेत् । वरु द्रुते रसं क्षिप्त्वा तृतीयांशं च हिङ्गुलम् ।। उत्तमा विदिता चेयं क्रिया हंसपोरली ॥ छिकारसेन सम्म तदर्धार्धानि निक्षिपेत् । शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, मोती, शुद्ध वछनाग, सौम्यालासिन्दूरशिलाटङ्कणानि च प्रक्षिपेत् ॥ तीक्ष्ण लोहभस्म और तुत्थ भरम ५-५ तोला पलाशवल्कलरसैरफैक्षीरैश्च सप्तधा । लेकर प्रथम पारे गंधककी कजली बनावें और पलाशवटचिश्चानां क्षिप्त्वा क्षारांश्छरावके । फिर उसमें अन्य औषधे मिलाकर थोड़ी देर खरल सिद्धो हामिनाऽयं तु द्वात्रिंशत्महरं पुनः । करके तुलसी, विष्णुकान्ता (कोयल), चीता, भि-द्विगुञ्ज दापयेच्छीतं समान हंसभैरवम् ॥ लावा, हली (कलियारी) और भांगके रसमें १-१ १ रसशाला गोंडलद्वारा प्रकाशित पुस्तकमें दिन घोटकर सबका एक गोला बनावें और उसे | "सौम्वाल" पाठ है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy