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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org पञ्चमो भागः रसप्रकरणम् ] उसमें ५ तो. शुद्ध पारद मिलाकर खरल करें । जब दोनों मिल जाएं तो उसमें नींबूका रस डालकर तप्त खल्वमें खरल करें । रस इतना डालना चाहिये कि दो पहर में सूख जाय। फिर नया रस डालकर दोपहर खरल करें । इसी प्रकार दो दो प्रहर पश्चात् नया रस डालते हुवे ८ दिन तक तप्त खल्बमें मर्दन करें | तत्पश्चात् सहजने की नवीन कोंपलोंको पीसकर उसकी मूषा बनाकर उसमें उपरोक्त स्वर्ण और पारदकी पिष्टी डालकर उसके मुखको इसी (सहंजने के पत्तों की ) लुगदीसे बन्द कर दें । तदनन्तर एक मजबूत हाण्डीमें नींबू के टुकड़े और कांजी भर कर चूल्हे पर चढ़ावें। तथा उसमें उपरोक्त पिष्टियुक्त संहजने के पत्तोंकी मूष को कपड़े में लपेट कर दोलायन्त्रविधिसे ८ दिन तक स्वेदित करें। ज्यों ज्यों कांजी सूखती जाए नई डालते जाएं। इसके बाद कांजी के सूख जाने पर अग्नि देनी बन्द करदें और स्वांगशीतल होने पर औषधकी पोटलीको निकाल लें । अब चणिबोर (झड़बेरा)के कोमल पत्तोंको पीस कर लुगदी बनावें । और एक पक्की मूषामें इस लुगदीको रखकर उसके ऊपर विष्णुक्रान्ता ( कोयल) की जड़की लुगदी रक्खें और उस पर मलयागिरी सफेद चन्दनके वृक्षकी छालका एक टुकड़ा रखकर उस पर उपरोक्त स्वर्ण पारद वाली पिष्टी रख दें एवं उसके ऊपर चन्दन की छालका टुकड़ा रखकर उसे बेरीके पत्तोंकी लुगदीसे ढक दें। इसके पश्चात् इस मूषा पर एक ढकना ढक दें कि जिसमें सुई के समान छेद हो और उस मूषा पर ३-४ कप मिट्टी करदें तथा उसे सुखा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ कर एक मिट्टी कूण्डे में रक्खें और उस पर ५ कण्डे रखकर पुट लगादें इसीप्रकार २१ पुट दें । हर बार बेरीके पत्ते की लुगदी आदि थोड़ी थोड़ी कम करते रहना चाहिये । इस विधि से २१ पुट पूरी हो जानेके बाद पारद खड़िया के समान सफेद हो जायगा और उससे भूमिपर रेखा खींची जायगी तो वह भी स्पष्ट और सफेद होगी । अब इस खिड़िया के समान तैयार हुवे स्वर्ण पारद के मिश्रणको भूधरयन्त्रमें रख कर निम्नलिखित प्रकारसे १०० पुट दें (१) ५ पुट ४-४ कण्डे में; (२) ५ पुट ५-५ कण्डों में (३) ५ पुट ६-६ कण्डोंमें (४) ५ पुट ७-७ कण्डे (५) ५ पुट ८ -८ कण्डों में (६) ५ पुट ९ - ९ कण्डों में (७) ५ पुट १०१० कण्डोंमें; इसी प्रकार हर ५ पुटके बाद १-१ Mast बढ़ाते जाएं | इस विधि से १०० पुट पूरी करने में कुल १४५० कण्डे खर्च होंगे। (हिसाब लगाने पर १३५० होते हैं ।) उपरोक्त पुटो में हर बार औषध का सोलहवां भाग शुद्ध गंधक भी औषधके नीचे रखना चाहिये । इस विधिसे १०० पुट में षड्गुण (६। गुना) गंधक जाति हो जाया और अत्यन्त रक्तवर्ण तथा तेज युक्त रस तैयार होगा उसे खरल करके सुरक्षित रक्खें । ! इससे १ रत्ती रस पान में रखकर खाना चाहिये । For Private And Personal Use Only इसके सेवन से समस्त प्रकारके प्रमेह, अनेक प्रकार के ज्वर, अतिसार, शूल, अजीर्ण, कामला, पाण्डु, हलीमक, वातव्याधि, और शरीरकी क्षीणता आदिका नाश होता है ।
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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