SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [हकारादि १ सेर हर्र, २ सेर दशमूल, १॥ सेर जौ इसे गुड़में मिलाकर सेवन करने से समस्त तथा ५-५ तोले पीपलामूल, चीता, भरंगी, शंख- प्रकार के शल नष्ट होते हैं । पुष्पी, खरैटी, कचूर, सोंठ, अपामार्ग (बिसखपरा), ( मात्रा–२-३ रत्ती।) नागरमोथा, पोखरमूल और गजपीपल लेकर हरों के (८६१६) हरीतक्यादिरसायनम् अतिरिक्त सबको एकत्र कूट लें और ३२ सेर पानीमें पकावें । हरौंको पोटलीमें बांध कर इस ( ग. नि. ! रसायना. १) पानी में डाल देना चाहिये । जब ४ सेर पानी रह जाय तो उसे छान लें और हरौंकी गुठली दूर करके हरीतकीमाधिकाक्षधाव्यउन्हें पीस लें और २५ तोले गोधृतमें भून लें । ___चूर्णीकृता लोहरजो विमिश्राः । तत्पश्चात् उनमें उपरोक्त छना हुवा क्वाथ और सर्पिर्मेधुभ्यां लिहतः शरीरे ३ सेर गुड़ मिलाकर पकावें । जब अवलेह तैयार जराग्रदूतं पलितं निहन्युः॥ होने के करीब हो तो उसे अग्निसे नीचे उतारकर | हरं, पीपल, बहेड़ा और आमला; इनका चूर्ण उसमें जायफल, केसर, दालचीनी, इलायची, तेज- १-१ भाग तथा लोह-भस्म सबके बराबर लेकर पात, नागकेसर, आमला, अजवायन, बहेड़ा,जावित्री, सबको एकत्र मिलाकर खरल करें। सेठ, काली मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण तथा | इसे घी और शहदके साथ सेवन करनेसे ताम्रभस्म और लोहभस्म प्रत्येक २॥ २॥ तोले पलित का नाश होता है। मिला दें। (मात्रा-२-३ रत्ती ।) यह पाक जीर्णज्वरनाशक, तृप्तिकारक, बल- (८६१७) हरीतक्यादिवटी दायक, पौष्टिक एवं रसविकार, संग्रहणी, धातुक्षीणता, | धातुस्राव, अर्श,श्वास,कास और वातरक्तमें गुणकारीहै। ( वृ. नि. र. । शूला.) (८६१५) हरीतक्यादियोगः हरीतकी त्रिकटुकं कुचिला गन्धं हिमु च । सैन्धवं च समं सर्व वटी कुर्यात्सुखावहाम ।। ( यो. र. । शूला. ; वृ. मा. ; व. से.। शूला.) लघुकोलप्रमाणां तां भक्षयेत्मातरेव हि । मूत्रान्तः पाचितां शुष्कां लोहचूर्णसमन्विताम् । एकैका वटिका भुक्ता जन्मशूलनिवारिणी ।। सगुडामभयां दद्यात्सर्वशूलोपशान्तये ॥ ग्रहण्यामतिसारे बाजीणे मन्दे च पावके । हरौंको (४ गुने) गोमूत्रमें इतना पकावें । उष्णोदकानुपानेन सुखमामोति नित्यशः ।। कि मूत्र शुष्क हो जाय । तदनन्तर उनका हर, सोंठ, काली मिर्च, शुद्ध कुचला, शुद्ध चूर्ण करके उसमें समान भाग लोहभस्म मिला लें। गंधक, होंग और सेंधा नमक: इनके समान भाग For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy