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३४ भारत-भैषज्य रत्नाकरः
[शकारादि गुल्मं प्लीहानमानाई श्वास कासमरोचकम् ।। (७३३६) शिग्रुत्वचादिवटिका हिका हृद्रोगमशांसि विविधान् शिरसोरुजान्॥ (ग. नि. । वाता. १९) पाण्ड्वामयं कफोक्लेशं सर्वजाच प्रवाहिकाम् । शिनत्वचा पुष्करमूलशुण्ठयौ पाहवस्तिशूलञ्च गुडिकैषा व्यपोहनि ।।! गोकण्टकः पिप्पलिका गुडूची ।
कचूर, पोखरमूल, हींग, अम्लबेत, : वाखार, रास्ना शठी सैन्धवचित्रको च चीतामूल, धनिया, अजवायन, बायबिडंग, सेंधा
___ सर्वाङ्गवाते गुटिका विधेया ॥ नमक, बच, चव्य, पीपलामूल, बनतुलसी, अना- सहजनेकी छाल, पोखरमूल, सेठ, गोखरु, रदाना, जीरा, और अजमोद समान भाग ले कर पीपल, गिलोय, रास्ना, कचूर, सेंधानमक और चूर्ण बनावें और उसे विजौरे नीबूके रस या मधु- चीतामूल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और शुक्तकी भावना दे कर ५-५ माशेकी गोलियां ! (उसे पानीमें घोटकर) गोलियां बना लें। बना लें।
इनके सेवनसे सर्वाङ्ग वायुका नाश होता है। . इनके सेवनसे गुल्म, प्लीहा, अफारा, श्वास,
( मात्रा-१॥ माशा । अनुपान-उष्ण कास, अरुचि, हिचकी, हृद्रोग, अर्श, अनेक प्रका- जल । ) रकी शिर पीड़ा, पाण्डु, कफोक्लेश, प्रवाहिका . शिलाजतु वटिका तथा पार्श्व, बस्ति और हृदयका शूल आदि रोग रस प्रकरणमें देखिये । नष्ट होते हैं।
शिवगुटिका (लघु) ( व्यवहारिक मात्रा-१॥-२ माशा ।) (ग. नि. । गुटिका. ४ ; र. का. धे. । पाण्डु. ; नोट-मधुशक्त बनानेकी विधि मकारावा.
व. से. । पाण्डु. ) सवारिष्ट प्रकरणमें देखिये।
प्र. सं. ६३४४ " लघुशिवगुटिका"
| देखिये। शतावरीमोदकः
शिवा गुटिका. ( र. र. ; धन्व.। वाजीकरणा.)
( व. से. ; च. द. । राजयक्ष्मा.) रस प्रकरणमें देखिये
रस प्रकरणमें देखिये.
(७३३७) शिवामोदकम्, शशिलेखावटी
( भै. र. । बालरो.) ( यो. र. । कुष्ठा.
शिवा तामलकी मूर्वा शतपुष्पा निशाद्वयम् । रस प्रकरणमें देखिये ।
आत्मगुप्ता वला बिल्वं देवपुष्पं शतावरी ॥
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