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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www. kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः हरीतकीखण्डः (२) रस- प्रकरण में देखिये । हरीतकीखण्डः (३) रस- प्रकरण में देखिये । (८५२६) हरीतक्यवलेह : (१) ( ग. नि. । लेहा. ५ ) भार्गीजटापलशतं सलिलार्मणाभ्यां युक्तं च मूलतुलया सहितं विपाच्य । पादस्थिते तु शतमत्र हरीतकीनां पक्तव्यमुज्ज्वलगुडस्य शतेन सार्धम् ॥ उत्तार्य तत्र शिशिरे मधुनः पलानि चत्वारि च त्रिगुणितानि पलत्रयं च । व्योषं त्रुटित्वगिभकेसरपत्रकाणा मेषां पलं खलु निधेयमथोपयुज्य ॥ श्वासं सकासमपि शोषमथातिहिक्का मेकाहिकं ज्वरमपीनसमुत्कटं च । हन्याद्रसायनमिदं हि पुरन्दरस्य प्रोक्तं सहस्रकरपुत्रभिषग्वराभ्याम् || ६। सेर भरंगीकी जड़ और ६।सेर दशमूलको कूटकर एकत्र मिलाकर ३२ सेर पानीमें पकायें और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें ६। सेर सफेद गुड़ और १०० हरें डालकर पुनः पकावें । जब गाढ़ा हो जाय तो अग्निसे नीचे उतार लें और ठंडा होने पर उसमें ९५ तोले शहद एवं ५ - ५ तोले सांठ, काली मिर्च, पीपल, इलायची, दालचीनी, नागकेसर, और तेजपात; इनका चूर्ण मिला दें । [ हकारादि इसके सेवन से श्वास, कास, शोष, हिचकी, एकाहिक ज्वर और पीनस का नाश होता है। ( मात्रा -- २ हर्र और १ तोला लेह । ) (८५२७) हरीतक्यवलेह : (२) (ग. नि. । लेहा. ५ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशमूलकषायस्य कंसे पथ्याशतं पचेत् । दत्त्वा गुडतुलां तस्मिल्लेहे दद्यात्सु चूर्णितम् ॥ जितकं त्रिकटुकं किञ्चिच्च यवशुकजम् । प्रस्थार्ध च हिमे क्षौद्रात्स निहन्त्युपयोजितः ॥ वृद्ध शोफज्वरमेहगुल्म Sarfarartosरक्तपित्तम् | वैवर्ण्यमुत्रान शुक्रदोष श्वासारुचिप्लीहगरोदरांश्च ॥ दशमूल ८ सेर क्वाथमें १०० हरें (साबित) और ६ | सेर गुड़ मिलाकर पकावें । जब लेह तैयार हो जाय तो उसमें दालचीनी, तेजपात, इलायची, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और जवाखार; इनका १ - १ तोला चूर्ण मिला दें एवं ठंडा होने पर आधा सेर शहद मिलाकर सुरक्षित रक्खें । इसके सेवनसे प्रवृद्ध शोथ, ज्वर, प्रमेह गुल्म, कार्य, आमवात, अम्लपित्त, रक्तपित्त विवर्णता, मूत्रदोष, अग्निविकार, शुकदोष, श्वास, अरुचि, प्लीहा, गरदोष और उदररोगोंका नाश होता है । ( मात्रा -- २ हर्र और १ तोला लेह । ) हरीतक्यादिपाकः रसप्रकरण में देखिये । इति हकाराचवले हमकरणम् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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