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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org चूर्णप्रकरणम् ] हर्र, अतीस, सेंधा नमक, काला नमक ( संचल ), बच और हींग समान भाग चूर्ण बनावें । कर पञ्चमो भागः इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे आमातिसार का नाश होता है । यह चूर्ण ग्राही और दीपन है । पाठान्तर के अनुसार स्थान पर " इन्द्रजौ " है । ( मात्रा - ६ माशे । ) (८४६५) हरीतक्यादिचूर्णम् (७) ( ग. नि. । ज्वरा. १ ) चूर्ण हरीतकी हिङ्गुपिप्पलीनागरान्वितम् । मातुलुङ्गरसाक्तं तु सन्निपातज्वरे हितम् || हर्र, हींग, पीपल और सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे बिजौरेके रस में मिला कर सेवन करने से सन्निपात वर नष्ट होता है । ( मात्रा - ४ रत्ती । ) ( मात्रा - ६ रत्ती । ) (८४६४) हरीतक्यादिचूर्णम् (६) ( वृ. मा. 1 उदावर्ता; यो र.; वृ. नि. र. ग. नि. । उदावर्ता. १४ ) हरीतकी यवक्षार: पीलूनि त्रिवृता तथा । घृतैश्चूर्णमिदं मुदावर्तविनाशनम् ॥ ( मात्रा -- २ - ३ माशे 1 ) (८४६७) हरीतक्यादिचूर्णम् (९) (ग. नि. । हृद्रोगा. २६; भै. र. । हृद्रोगा. ; वृ.नि. र. | हृद्रोगा. ) हरीतकी वचा रास्ना पिप्पली विश्वभेषजम् । इसे घृतमें मिलाकर पीनेसे उदावर्तका नाश | शठीपुष्करमूलं च चूर्ण हृद्रोगनाशनम् ॥ हर्र, जवाखार, पीलुके फल और निसोत समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । होता है। हर्र, बच, राना, पीपल, सोंठ, कचूर और पोखरमूल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे सेवन करने से हृद्रोग का नाश होता है। ( मात्रा --- २ - ३ माशे । ) (८४६८) हरीतक्यादिचूर्णम् (१०) " सेंधा नमक " के Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४३ (८४६६) हरीतक्यादिचूर्णम् (८) (व. से. । वातव्या . ; वृ. नि. र. । वातव्या . ) हरीतकी वचा रास्ना सैन्धवं चाम्लवेतसम् । घृतमार्द्रक संयुक्तमपतन्त्र कनाशनम् ॥ हरी, बच, राना, सेंधा नमक, अम्लवेत और अदरक (सोंठ) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे घी में मिला कर चाटने से अपतन्त्रक रोग नष्ट होता है । ( रा. मा. । ज्वरा. २० ) चूर्ण शिवामलकचित्र पिप्पलीनां लक्ष्णीकृतं पिबति यः शिशिरोदकेन । दीप्तिं करोति च परां जठरानलस्य क्षीणेन्द्रियस्य कुरुते रतिशक्तिमेतत् ॥ हर्र, आमला, चीतामूल और पीपल समान भाग ले कर बारीक चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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