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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [सकारादि (८३७२) स्वर्णयोगः (६) कमल और नीलोत्पल के काथ तथा मुलैठीके (सु. सं.। चि. अ. २८ ; ग. नि. । | कल्कके साथ गोघृत सिद्ध करें। इस धृतके साथ रसायना. १) स्वर्ण सेवन करने से अलक्ष्मी का नाश और आयुको | वृद्धि होती है तथा हाथी के समान महा बल सुवर्ण पद्मवीजानि मधु लाजाः प्रयङ्गवः । | प्राप्त होकर मनुष्य देवताके समान हो जाता है । गव्येन पयसा पीतमलक्ष्मी प्रतिषेधयेत् ॥ स्वर्ण, कमलगट्टे की गिरी, धानकी खील और । अनुपान-कमल, नीलात्पल और मुलैठीके फूलप्रियङ्गु; इनके चूर्ण को शहदके साथ खाकर साथ पकाया हुवा दूध। ऊपर से गायका दूध पीने से अलक्ष्मी का नाश प्रयोग बनानेमें जहां मन्त्र न बतलाया गया होता है। हो वहां त्रिपदो गायत्री मन्त्रका जाप करके प्रयोग सिद्ध करना चाहिये। (८३७३) स्वर्णयोगः (७) (सु. सं. । चि. अ. २८) (८३७५) स्वर्णयोगः (९) शतावरीघृतं सम्यगुपयुक्तं दिने दिने । ( वा. भ. । उ. अ. १) सक्षौद्रं ससुवर्णश्च नरेन्द्र स्थापयेद्वशे ॥ | हेमश्वेतवचाकुष्ठमर्कपुष्पी सकाञ्चना । शतावरी के साथ पकाये हुवे घृत और शहद हेममत्स्याक्षकः शङ्कः कैण्डर्यः कनकं वचा ॥ के साथ स्वर्ण सेवन करने से ( शरीर इतना स्वस्थ चत्वार एते पाहोक्ताः पाश्या मधुघृतप्लुताः। सुन्दर और बलवान् हो जाता है कि ) राजा भी वर्ष लीढा वपुर्मेधावलवर्णकराः शुभाः ।। वशमें हो जाते हैं। (१) सोने के वर्क, सफेद बच और कूठ (२) (८३७४) स्वर्णयोगः (८) अर्कपुष्पी और सोनेके वर्क (३) सोनेके वर्क, (सु. सं. । चि. स्था. अ. २८) मत्स्याक्षी (मछेछी) और शंख का चूर्ण (४) पद्मनीलोत्पलक्वाथे यष्टीमधुकसंयुते। कैडर्य, सोनेके वर्क और बच, ये चारों प्रयोग सर्पिरासादितं गव्यं ससुवर्ण सदा पिबेत् ॥ | बल, वर्ण, मेधा और शरीरकी वृद्धि करने वाले हैं। पयश्चानुपिबेसिद्धं तेषामेव समुद्भवे। इन्हें घी और शहदमें मिला कर १ वर्ष तक सेवन अलक्ष्मीनं सदायुष्यं राज्याय सुभगाय च ॥ | करना चाहिये। यत्र नोदीरितो मन्त्री योगेषु तेषु साधने । । . स्वर्णराजवङ्गेश्वरः शब्दिता तत्र सर्वत्र गायत्री त्रिपदी भवेत् ॥ पाप्मानं नाशयन्त्येता दयश्चौषधयः श्रियम् । प्र. सं. ५५२७ “ मस्कमृगाको रसः" कुर्युनागबलं चापि मनुष्यममरोपमम् ॥ देखिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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