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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि - मेंसे बार बहूटी के समान लाल रंगके सत्वको स्वर्णमाक्षिकको शहद, अरण्डीके तेल, गो. निकाल लें। मूत्र, घी और केलेकी जड़के रसकी अनेक भावनाएं इस सबमें सुहागा मिलाकर मूषामें रखकर दे कर मूषामें रख कर ध्मानेते उसका सत्य निकल ध्मानेसे वह ताम्रके समान हो जाता है। आता है। स्वर्ण माक्षिक-सत्व ताम्रके समान होता यह सत्व देह को लोहके समान दृढ़ कर देता है, उसका रंग चौंटली के समान लाल होता है और है । यह विधि " देवी शास्त्र" में वर्णित है। वह मृदु होता है तथा शीव पिघल जाता है । । स्वर्णमाक्षिक सत्य शीतल और देहको दृढ़ (८३४२) स्वर्णमाक्षिकसत्वपातनम् (२) | करने वाला है । ( र. र. स. । पू. अ. २) (८३४४) स्वर्णमाक्षिकसत्वपातनम् (४) त्रिशाशनागर्सयुक्तं क्षाररम्लेश्च मादतम् । ( आ. वे. प्र. ! अ. १२ ; र. चं. ) मातं प्रकटमूपा गं सत्वं मुश्चति माक्षिकम् ॥ सप्तवार परिद्राव्य क्षिप्तं निर्गुण्डिकादवे । | एरण्डोत्थेन तैलेन गुञ्जा क्षौद्रं च टङ्कणम् । माक्षिकसत्व सम्मिश्रं नागं नश्यति निश्चितम् ॥ मर्दितं तस्य वापेन सत्वं माक्षिकजं भवेत् ।। स्वर्णनाक्षिकके चूर्ण में तीसवां भाग सीसा ___गुञ्जा (चौंटली), शहद और सुहागा समान मिलाकर क्षार और अम्लद्रों के साथ खरल करें। | भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर अरण्डीके तदनन्तर उसे खुली हुई मू में रख कर ध्मानसे तेलके साथ खरल करें। स्वर्णमाक्षिकको तपाकर उसमें इस मिश्रणका प्रक्षेप देनेसे स्वर्णमाक्षिकका उसका सत्व निकल आता है। सत्व निकल आता है। इस सत्वको पिघला पिघला कर सात बार संभालुके गसमें वुझानेसे उसमें मिला हुवा सीसा । (८३४५) स्वर्णमाक्षिकादिचूर्णम् नष्ट हो जाता है। । (व. यो. त. । त. १४७; व. से. । वाजीकरणा.) (८३४३) स्वर्णमाक्षिकसत्वपातनम् (३) माक्षीकधातुगदपारदलोहचूर्ण (र. र. स. । पू. अ. २) पथ्याशिलाजतुविडङ्गवृतानि योऽद्यात् । क्षौद्रगन्धर्वतैलाभ्यां गोमत्रेण घतेन च । एकोनविंशति दिनानि गदार्तितोऽपि कदल कन्दसारेण भावितं माक्षिकं मुहुः ॥ साशीतिकोऽपि रमत्यबलां युवे ।। भूषायां मुञ्चति तं स वं शुल्बनिभं मृदु।।। स्वर्णमाक्षिक भस्म, कूर, पारद भम्म, लोह गुनादीजसमच्छायं दूनद्रावं च शील ॥ भस्म, ह, शिलानौत और बायबिडंग सनान तापसत्वं विशुद्धं तदेहलोहकरं परम् ।। भाग ले कर चूर्ण बनावें। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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