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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [सकारादि प्रक्षिप्य चालयेल्लोखां मन्द लोहशलाकया। इसके सेवनसे ग्रहणी, शोष, क्षय, कास, श्वास सतः पाकं विदित्वा तु रम्भापत्र शनैः क्षिपेत् ॥ | प्रमेह, शूल, अतिसार और पाण्डुका नाश होता गोमयस्थे तदुपरि रम्भापत्रेण यन्त्रयेत् । तथा बल, वी और अग्निको शोघ्र हो वृद्धि हो शीतं तच्चूर्णितं गुजाक्रमद्धं निषेवयेत् ॥ जाती है ।* माषमात्रं भवेद्यावत्ततो मात्रां न वधयेत् ।। (८३२९) स्वर्णपर्पटोरसः सक्षौद्रेणोषणेनैव लेहयेद्भिषगुत्तमः ॥ (र. रा. सु. । कासा.) ग्रहणी हन्ति शोषं च मुवर्णरसपर्पटी। शुद्धं मृतं भवेत्कर्ष गन्धकं द्विगुणं तथा । सघोषलकरी शुक्रवर्धिनी वह्निदीपनी ॥ भस्महाटक मृतांशं त्रयं खल्वे विमर्दयेत् ॥ क्षयकासश्वासमेहशूलातीसारपाण्डुनुत् ॥ कजलाभं लोहपात्रे कदल्याद्रावभावयेत् । ___ शुद्ध पारद ५ तोले और सोनेके वर्क १।। ऊर्ध्वाधो गोमयं दत्त्वा हेमपर्पटिका रसः ॥ तोला ले कर पारेमें १-१ वर्क डाल कर नीबूके | कासं क्षय सकृच्छं च मूत्रघातं तथाश्मरीम् । रसके साथ खरल करें । जब दोनों मिल जावें तो सिद्धा पर्पटिका ख्याता सर्वरोगविनाशनी ॥ गर्म पानीसे धो डालें । तदनन्तर लोह पात्रमें (घी | रसायिनी त्वियं श्रेष्ठा शिशूनाश्च गदापहा ।। पोत कर) ५ तोले शुद्ध गंधक डाल कर बेरीके | शुद्ध पारद श तोला, शुद्ध गंधक २॥ तोले कोयलों पर रखें । जब गंधक पिघल जाय तो और स्वर्ण भस्म ११ तोला ले कर तीनोंको एकत्र उसमें उपरोक्त स्वर्णमिश्रित पारद डाल कर लो मिला कर खरल करें जब कजली हो जाय तो हेकी सलाईसे अच्छी तरह चलावें। जब पाक उसे लोहपात्रमें पिघला कर गायके गोबर पर बिछे तैयार हो जाय तो उसे गायके गोबर पर बिछे हुवे हुवे केलेके पत्ते पर फैला दें और उसके ऊपर केले के पत्ते पर फैला कर उसके ऊपर पुनः केलेका दूसरा पत्ता रख कर उसे गोबरसे ढक दें । जब पत्ता ढक दें और गोबरसे दबा दें। जब शीतल हो शीतल हो जाय तो निकाल कर पीस लें। जाय तो पीसकर रखें। सेवन विधि-प्रथम दिन १ रत्ती पर्पटी इसके सेवनसे कास, क्षय, मूत्रकृच्छ्, मूत्राकाली मिर्चके चूर्ण और शहदके साथ खिलावें।। धात और अश्मरीका नाश होता है। यह पर्पटी | बालरोग-नाशक तथा रसायन है। दूसरे दिन इसी अनुपानके साथ दो रत्ती पर्पटी | दें। इसी प्रकार प्रतिदिन १-१ रत्ती पर्पटी *पाठान्तरके अनुसार पारद स्वर्णसे आठ बढ़ाते रहें। | गुना है और पित्तज रोगोंमें खांडके साथ, वातज . जब १ माषा (११ माशा-१० रत्ती) रोगोंमें बंसलोचनके साथ एवं कफज रोगों में हो जाय तब प्रतिदिन १-१ रत्ती घटाना | वंसलोचन, पीपल और शहदके साथ देना शुरु करें। लिखा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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