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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चूर्ण प्रकरणम् ] www. kobatirth.org पञ्चमो भागः . (७२८६) शठया चूर्णम् व. से. 1 श्वासा. ( वृ. यो त । त. ८० ; घृ. मा. । हिक्का श्वासा. ; ग. नि. । चूर्णा. ३; वृ.नि. र. ) शठी पुष्करजीवन्तीत्वङ्मुस्तं पुष्कराश्यम् । सुरसा तामलक्योsपि पिप्पल्यगुरुबालकम् ॥ नागरं च समं चूर्ण कृत्वा द्विगुणशर्करम्' । सर्वथा तमश्वासे किायां च प्रयोजयेत् ॥ कचूर, कमलकन्द, जीवन्सी, दालचीनी, नागरमोथा, पोखरमूल, तुलसी, भुई आमला, पीपल, अगर, सुगन्धवाला और सांठ १ - १ भाग तथा खांड सबसे दो गुनी ले कर यथा विधि चूर्ण बनावें । यह चूर्ण तमक श्वास और हिचकीको नष्ट करता है । ( मात्रा - ३-४ माशे । ) ( अनुपान - मधु । ) (७२८७) शतपुष्पादि चूर्णम् ( वृ. नि. र. । अतिसारा ) शतपुष्पा च विश्वा च श्वेताजाजी हरीतकी । खाखसस्य फलं चैव पलार्द्ध तु पृथक् पृथक् ॥ सूक्ष्म चूर्ण विधायाथ घृतभ्रष्टं तु कारयेत् । सर्वार्द्धातुसिता या पलार्द्ध दधिसंयुतम् ॥ प्रातःकाले भक्षयेत्तु सर्वातीसारनाशनम् । पथ्यं कुर्यात् विशेषेण शालिभक्तं स तक्रकम् सौंफ, सोंठ, सफेद जीरा, हर्र और पोस्तका डोढा समान भाग ले कर चूर्ण बनावें तथा उसे १ अष्ट गुणशर्करमिति पाठान्तरम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ मन्दाग्नि पर धीमें सेक लें और फिर उसमें सबसे आधी मिसरी मिला लें । मात्रा - २॥ तोला | इसे दही में मिला कर प्रातः काल सेवन करनेसे समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट होते हैं । पथ्य -- शाली चावलोंका भात और तक्र । ( व्यवहा. मात्रा ३ माशे । ) (७२८८) शतपुष्पाद्य चूर्णन् (ग. नि.. | चूर्णा, ३. आमवाता. २३; वृ. मा. । आमा . ) शतपुष्पा विडङ्गानि सैन्धवं मरिचं समम् । चूर्णमुष्णाम्बुना पीतमनिसन्दीपनं परशु || सौंफ (या सोया), बायबिडंग, सेंधा नमक और काली मिर्च समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । . इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे अग्निदीप्त होती है । मात्रा - १ - १॥ माशा ) (७२८९) शतावर्यादिचूर्णम् (१) ( शा. सं. । खं. २ अ. ७ ) शतावरी गोक्षुरश्च बीजं च कपिकच्छुजम् । गाङ्गेरुकी चातिबला बीजमिक्षुरकोद्भवम् !! चूर्णितं सर्वमेकत्र गोदुग्वेन पिबेन्निशि । न तृप्तिं याति नारीभिर्नरश्चूर्ण प्ररगदतः || ।। सतावर, गोखरू, कौंच के बीज, नागबला (गंगेरन) की जड़, अतिबला (कंधी) की जड़ और तालमखाना समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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