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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] पञ्चमो भागः ३६१ - - शुद्ध गन्धक, शुद् हरताल, स्वर्णमाक्षिक- (८२३५) सुदर्शनरसः (२) भस्म, लोह-भस्म, तुलसीदलका चूर्ण, शुद्ध बछ (र. का. धे. । ज्वरा.) नाग, शुद्ध पारद, सुहागेकी खील तथा सेठ, मिर्च, पीपल, अरनीकी जड़, काकडासिंगी और | | रसस्य भाग एकः स्याद् गन्धकस्य चतुर्दश । हर; इनका चूर्ण समान भाग ले कर प्रथम पारे । मर्दयेन्मासमेकं तु सहदेव्या रसैद्धयम् ।। गन्धकको कजली बनावें और फिर उसमें अन्य विषात् त्र्यंशेषु गोजिहारसैः षोडश भावना। ओषधियोंका चूर्ण मिला कर तुलसी और हाथी- तालकांशौ द्विशः कूष्माण्डोत्थैः पञ्चदशापि च ॥ सुंडीके रस तथा दूधमें १-१ दिन खरल करके भागमेकैकं सोममलं पश्चाशदङ्गजैः रसैः। (-३ रत्तीकी ) गोलियां बना लें। टङ्कणस्य त्रयो भागा लिङ्ग्याः परसभावनाः।। इनके सेवनसे वातव्याधिका नाश होता है। हिडिम्ब्यास्त्रिीलकण्ठीरसैदशभावनाः । अनुपान--रास्ना, गिलोय, देवदारु, सेठ जैपालात्सप्तभागाश्च शिवनेत्रत्रिभावनाः ॥ और नागरमोथा; इनसे यथाविधि सिद्ध दूधमें शुद्ध आकल्लकवचाभार्कीकणामरिचनागरम् । गूगल मिला कर मन्दोष्ण करके पियें । | जीरके च लवङ्गानि एकैकांशानि सर्वतः ।। धूर्तच्छदरसैर्भाव्यं सप्तविंशतिभावितम् । (८२३४) सुदर्शनरस: (१) छायाशुष्कां च गुटिकां गुञ्जामानां च कारयेत् ॥ (र. का. धे. । । हण्य.) अयं सुदर्शनो नाम रसः सर्वगदापहः । मूर्छितं मर्दयेत्सूतं दध्ना घर्मे दिनावधि ।। तत्तद्रोगानुपानेन विशेषाज्ज्वरहृत्परः ।। तत्तु शुष्क त्रिकटुकं सिन्दूरं निष्कमात्रकम् ॥ शुद्ध पारद १ भाग और शुद्ध गन्धक १४ यवक्षारस्य निष्कैकम्लपर्णीनिशाद्वैः । | भाग ले कर दोनोंकी कज्जली बनावें और उसे १ त्रिदिनं मर्दयेत्वल्वे लेह्यं मध्वाज्यसंयुतम् ॥ मास तक सहदेवीके रसमें खरल करें । तदनन्तर रसः सुदर्शनः ख्यातो. ग्रहणोरोग शान्तिकृत् ॥ ३ भाग शुद्ध बछनागका चूर्ण मिला कर गोजिह्वा १ भाग मन्छित पारद ( कम्जली ) को १ . ( गोजिया घास ) के रसकी १६ भावना दें और दिन दहीके साथ धूपमें खरल करें और फिर फिर २ भाग शुद्ध हरताल मिला कर भूरे कुम्हड़े सुखा कर उसमें १-१ भाग सोंठ, मिर्च, पीपलका (पेरे) के रसकी १५ भावना दें। तत्पश्चात् उसमें चूर्ण, रससिन्दूर तथा यवक्षार मिला कर ३-३ । १ भाग शुद्ध संखिया मिला कर भंगरेके रसकी दिन अम्लपर्णी और हल्दीके रसमें खरल करें। ५० भावना दें। फिर ३ भाग सुहागेकी खील इसे शहद और घीके साथ मिला कर सेवन | मिला कर शिवलिगीके रसकी ६ भावना दें। फिर करनेसे ग्रहणी रोगका नाश होता है। ३ भाग हिडिम्बा ( शुद्ध मनसिल ? ) मिला कर मात्रा-६ रत्ती। | नीलकण्ठीके रसकी १२ भावना दें । तत्पश्चात् For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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