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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ सकारादि - (८१९७) सर्वेश्वररसः (३) | भावना दे कर शराव-सम्पुट में बन्द करके ३ दिन ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. ; धन्व. । गुल्मा. ; तक बालुका-यन्त्रमें स्वेदित करें और फिर औषधरसे. चि. म. | अ. ९) को पीस कर उसमें ११ तोला पीपलका चूर्ण तथा ३।।। माशे शुद्ध बछनागका चूर्ण मिला कर तानं दशगुणं स्वर्णात्स्वर्णपादं कटुत्रिकम् । खाल को। त्रिकटुत्रिफला तुल्या त्रिफलार्द्धमयोरजः॥ मात्रा-१ रत्ती। अयसोर्द्ध विषश्चैव सर्व सम्मर्थ यत्नतः ।। इसके सेवनसे सुप्तवातका नाश होता है। सर्वेश्वररसो नाम रौधिरगुल्मनाशनः ॥ ( नोट--वृ. नि. र. में वातरक्ताधिकारमें स्वर्ण-भस्म १ तोला, ताम्र-भस्म १० तोले सर्वेश्वर रसका एक पाठ लगभग इसके समान ही तथा सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा और आमला; है। उसमें अभ्रकके स्थानमें ११ तोला हिंगुल है इनका समान-भाग मिलित चूर्ण ६ माशे; लोह | तथा भावना द्रव्योंमें अरण्ड और खसके स्थानमें भस्म १।। माशा और शुद्ध बछनागका चूर्ण ६ रत्ती | विषमुष्टि, धतूरा और करवीर है। भावनाओंकी ले कर सबको एकत्र मिला कर खरल करें। | संख्या सात सात है । अनुपानमें धतूरेका रस इसके सेवनसे रक्तगुल्म नष्ट होता है। लिखा है ।) ( मात्रा--१ रत्ती।) । र. र. स. अ. २१ में स्पर्शवातनाशक (८१९८) सर्वेश्वररसः (४) "सर्वेश्वर रस"का एक अन्य पाठ है जिसमें श तोला (र. र. स. । उ. अ. २०) हिंगुल तथा ५-५ तोले सांठ, मिर्च, पोपल और चांदी भस्म अधिक है एवं गन्धक १० तोले है, पालिकं ताम्रगन्धाभ्रं कर्षांश लोहपारदम् । | भावना द्रव्य वृ. नि. र. के उपरोक्त पाठके अनुसार स्नुह्यक्षीरवातारिजम्बीरोशीरवारिभिः॥ हैं। शेष प्रयोग नं. ८१९८ के समान है। पाठ मर्दितं वालुकायन्त्रे स्वेदयेदिवसत्रयम् । कोंकी जानकारीके लिये र. र. स. का पाठ पृथक भी कर्ष कणाया निष्कं च विषस्यास्मिन्विनिक्षिपेत् ॥ " दिया है । प्र. सं. ८१९९ देखिये । एष सर्वेश्वरः सद्यो गुनामात्रः प्रसुप्तिजित् ॥ ताम्र-भस्म ५ तोले, शुद्ध गन्धक ५ तोले, (८१९९) सर्वेश्वररसः (५) अभ्रक भस्म ५ तोले, लोह-भस्म ११ तोला ( र. र. स. । उ. अ. २१) और शुद्ध पारद १ तोला ले कर सबको एकत्र कर्षमात्रं रसस्य स्याल्लोइहिङ्गलयोरपि । मिला कर कज्जली बनावें और उसे सेंड ( स्नुही- भास्वद्गगनयोश्चापि गन्धकस्य पलं मतम् ।। थूहर ) के दूध, आकके दूध, अरण्डमूलके काथ, | व्योषगन्धकताराणां प्रत्येकं तु पलं पलम् । जम्बीरी नीबूके रस तथा खसके काथकी १-१ निम्बुद्रायेण सम्मर्थ भावयेत्सप्तधा पृथक् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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