SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अञ्जनप्रकरणम् ] मर्दयेनवनीतेन सुधृतं कज्जलं नयेत् । अञ्जनेनैव नेत्राणि बहुपीडाकराणि च । तत्कालं शममायान्ति प्रणश्यन्ति तदा गदाः । सतताञ्जनयोगेन सदा नैमल्यमाप्नुयुः ॥ नेत्रप्रसादनं नृणां नेत्ररोग निवारणम् । पुष्पादिकांश्च हन्याद्धि व्याधीन्मुखानं पञ्चमो भागः विदम् ॥ घृतका दीपक जला कर स्वच्छ कज्जल एकत्रित करें और फिर १ भाग यह कज्जल तथा १ - १ भाग शुद्ध गन्धक, नीलाथोथा और कपूर लेकर सबको एकत्र मिला कर मक्खनके साथ घोटें । 1 इसे आंख में लगाने से अत्यन्त पीडायुक्त अक्षिपाकको भी तुरन्त आराम हो जाता है । इसे रोज़ आंखोंमें लग|नेसे आंखका फूला और काच आदि अनेक नेत्ररोग नष्ट होते और नेत्र निर्मल रहते हैं । ! (८०९१) सुखावतीवतिः ( भै. र. । नेत्र. ; च. सं. । चि. अ. २६ ; व. से. । नेत्ररोगा. ; वृ. मा. ; र. का. धे. नि. । नेत्ररोगा . ) ; ग. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९३ इसे आंख में लगाने से तिमिर, पटल, काच अर्म, नेत्रशुक्र, नेत्रकण्डू, क्लेद, नेत्रार्बुद और नेत्रमलका नाश होता है । (८०९२) सुदर्शना वर्तिः (१) (ग. नि. । नेत्र रो. ) उदधिजलजः फेनः शङ्खः सचन्दनपद्मकप्रवरमरिचं पिप्पल्यो यत्तथाssलमनःशिले । धरणसमितानष्टौ भागान् सकुङ्कुमनागरान्मधुसमयुतां वर्ति कृत्वा द्विरंशरसाअनाम् ॥ मलतिमिरहा कण्डून्येषा तथाऽर्बुदनाशिनी स्रवति च भृशं येषां नेत्रं तदप्युपशाम्यति । यदपि सरुजं सास्रात्रं यच्छिरानुगतं भवेतदपि निरुजं नेत्रं सद्यः सुदर्शनयाऽञ्जितम समुद्रफेन, शंख, लाल चन्दन, पद्माख, काली मिर्च, पीपल, हरताल, मनसिल, केसर और सेठ इनका चूर्ण १ - १ भाग तथा शुद्ध रसौत २ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें और फिर शहद में मिला कर वर्तियां बना लें । इसे आंख में लगानेसे नेत्रमल, तिमिर, नेत्रकण्डू और नेत्रार्बुदका नाश होता है । यदि आंख से अत्यधिक स्राव होता हो या पीडायुक्त स्राव होता हो तो वह इसके व्यवहारखे शीघ्र नष्ट हो जाता है । कतकस्य फलं शङ्खं त्र्यूषणं सैन्धवं सिता । hat रसाञ्जनं क्षौद्रं विडङ्गानि मनःशिला || कुक्कुटाण्डकपालानि वर्त्तिरेषा व्यपोहति । तिमिरं पटलं काचपर्म शुक्रं तथैव च ॥ कण्डूक्लेदार्बुदं हन्ति मलञ्चाशु सुखावती ॥ (८०९३) सुदर्शना पर्तिः (२) निर्मली के फल, शंख, सोंठ, मिर्च, पीपल, (ग. नि. । नेत्ररो. ) सेंधा नमक, मिश्री, समुद्रफेन, रसौत, बायबिडंग, त्रिकटुकविडङ्गसैन्धवमधुक शिलातुस्थरोचनारोधैः। मनसिल और मुरगीके अण्डेके छिलके; इनका चूर्ण | त्रिफलातगररसाञ्जनकुसुमाञ्जनपाटला कुसुमैः ॥ समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर शहद के गैरिक समुद्रफेनमपौण्डरीकप्रियङ्गुलाक्षाभिः । साथ खरल करें और वर्तियां बना लें । | कतकफळ सिन्धुवारक सितमरिचपलाश निर्यासैः।। For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy