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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेपमकरणम् ] पश्चमो भागः २८७ - - - - तिलतलं च यत्नेन सम्यक् मृद्वग्निना पचेत् । तेन लि समाभ्यक्तं यावदिच्छां प्रवर्तते ॥ सबको एकत्र मिलाकर पानीमें पीसकर लेप करनेसे मनुष्यका लिंग घोड़ेके लिंगके समान स्थूल हो जाता है। महिषी नवनीतं च मुसलीचूर्णमिश्रितम् । धान्यराशिस्थितं भाण्डे सप्ताहाच्च समुद्धरेत् ॥ तेन प्रलेपयेल्लिा यामैकाद्वर्तते ध्रुवम् । . x x x बड़ी कटेलीके 'फलका चूर्ण, कौंचका चूर्ण, घी, शहद और तेल १-१ भाग लेकर सबको एकत्र . मिलाकर ताम्रपात्र में भरकर रख दें। ___मात दिन तक इसका लेप करने से लिंग वृद्धि होती है। निर्मल लिङ्गमालिप्य गोमयेन पुनः पुनः। सिक्तं जलेन शीतेन वर्द्धते यावदिच्छति ॥ तैलेन सार्षपैः सार्धमालिम्पेद्दाडिमत्वचम् । लिङ्गकर्णस्तनानां च वृद्धिहेतुरिदं किल ।। असगन्ध (चिरचिटे) के बीज, कटेलीके फल, सारिवा, तिल, इन्द्रजौ और सरसो इनका चूर्ण समान भाग लेकर सबको दूधके साथ पीसें और फिर उसमें १ भाग धी मिला लें। इसकी मालिशसे लिंग अत्यन्त स्थूल हो जाता है। गोरोचनाभ्रकमदसमांशं मधुना सह । पेषयित्वा समं लिम्पेल्लिङ्गं मुसलबद्भवेत् ।। कूठ, नागबलाकी जड़, बला (खरैटो)की जड़, बच, असगन्ध, गजपीपल और कनेरकी जड़, इनका : कूर, बड़ी कटेलीका फल, शतावर और बारीक चूर्ण १-१ भाग ले कर सबको नवनीत __ असगन्ध इनका चूर्ण तथा घी १-१ भाग, तिलका (मक्खन) में मिलाकर लेप करनेसे लिंग मूसल के तेल सबसे चार गुना और पानी तेलसे ४ गुना समान स्थूल हो जाता है। ले कर सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें। । इसकी मालिशसे लिंग यथेच्छ प्रवृद्ध हो कटेलीका फल या जड़, सफेद सरसों, बच जाता है। और असगन्ध; इनका समान भाग चूर्ण ले कर For Private And Personal Use Only
SR No.020118
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages633
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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